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________________ त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा । आठ अक्षर हैं ? । पाठकमहाशय ! आप इस बातका निर्णय कर सकते हैं कि छलान्ध कूप में जैनभिक्षु पड़ा है या 'समुचित उत्तरदान पत्र' के लेखक महानुभाव । क्यों कि मूल लेख में तो साफ २ सात अक्षर ही लिखे हुए मौजूद हैं और लेखक कहते हैं आठ हैं, यही उनके कपट का नमूना किले पर का लेख देखने से अच्छी तरह प्रगट हो सकेगा। ( ९) इस भूल का सुधार लेखक इस प्रकार करते हैं, " जीर्णोद्धारः करापितः " ऐसा प्रवृत्ति निमित्त शुद्ध प्रयोग से ही छंद दोष अलग हो गया तो जैनभिक्षु जी कारापितः ऐसा शुद्ध प्रयोग लिख के कौनसा दोष का परिहार करेगे सो बताना चाहता था ? इस लिये यह भूल भी जैनभिक्षु की ही है।" कौन कह सकता है कि ' जीर्णोद्धारः करापितः ' यह प्रयोग शुद्ध है ? ' करापित ' यह शब्द लेखकों की बुद्धिकी माफिक बि. लकुल रद्दी है, क्यों कि यह संस्कृत व्याकरण से किसी प्रकार सिद्ध नहीं हो सकता। लेखकों ने यह तो लिख दिया कि 'करापित ' शब्द प्रवृत्ति निमित्त शुद्ध है पर शाब्दबोधप्रक्रिया का भी कभी अध्ययन किया था या नहीं ?, मालूम तो नहीं होता कि अध्ययन किया हो, या तद्विपयक ग्रन्थ वांचा हो । कारण कि कुछ भी शाब्दबोध की गंध ली होती तो 'करापित' शब्द को प्रवृत्तिनिमित्त शुद्ध नहीं कहते । लेखकों को मालूम है कि प्रवृत्तिनिमित्त किस चिडिया का नाम है ? । क्या अशुद्ध शब्द का भी कोई प्रवृत्तिनिमित्त हो सकता है ?। वाह रे लेखकों की विद्वत्ता ! अब तो अशुद्धशब्दो का भी दिन वल गया, क्यों कि उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003120
Book TitleTristutik Mat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherLakshmichandra Amichandra Porwal Gudabalotara
Publication Year1917
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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