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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा । wwwmum दिये, तो क्या वे सब निकम्मे बैठे थे जो पूरा पता लगाये विना ही उक्त लेखों को इतिहास में उपयोगी मान लिया ?, वास्तव यह है कि सेंकडों तो क्या पच्चीस-पच्चास वर्ष पहले गुजरी बात को बताने वाले लेख भी इतिहास में उपयोगी हो सकते हैं, पर यह बात जरूर है कि पक्षपाती लोग उसे देख भाल नहीं सकते, तो मंगल ही में अन्धपन को याद करने वाले आप-केसे नवीन लेखक भी इस को न देख सकें तो इस में कुछ आश्चर्य नहीं ।
फिर महाशय हर्ष-तीर्थ कहते हैं कि
" प्राचीन तीर्थ के विषय में (३०-३१ ) पंक्तियां तक पंन्यासपदवी का असंबद्ध लेख लिखना- धोला पे काला ही करना है ! क्यों कि प्रमाणिक जैन शास्त्रों में आचार्य, (१) उपाध्याय, (२) प्रवर्तक, (३) स्थविर, ( ४ ) रत्नाधिक, (५) ये पांच पदवियां लिखी है, परंतु पंन्यास पदवी का लेख किसी जैन शास्त्र में खुल्ला देखने में प्रायः जनों को नहीं आता है जिस से कां तो इस बारे में कोई प्रमाणिक जैन शास्त्र का खुल्ला पाठ बतलाना था, नहीं तो उपर लिखित पदवीयां में अमुक पदवी में पंन्यास पदवी अंतर्भूत है ऐसा स्पष्ट लेख लिखते तो भी ठीक था पण तीर्थ का लेख विना एक ही बोया गामका लेख से पंन्यास पदवी सिद्ध करना आकाश कुसुमवत् है।"
लेखक महाशयों को इस बात का खयाल है कि " कोरटा तीर्थ " शीर्षक जैन भिक्षु का लेख किस विषय में था ? उसका मुख्य साध्य क्या था ? उसका विषय था इतिहास, और वही उसका साध्य था, " बोया गाम का शिला लेख खास ऐति
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