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अहं ।
त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
[ प्रथम-भाग]
परमात्मा श्री महावीर देव की त्रिकालविषयक पवित्र वाणी की सत्यता संसार भर में सूर्य की तरह प्रकाशमान है, " पंचमारक में मेरा शासन चालनी प्राय हो जायगा " इस भविष्यद् भाषिणी आप की वाणी की कई मत पक्षोंने सत्यता कर दिखाई है और वर्तमान में कर रहे हैं।
त्रैस्तुतिक मत भी इसी प्रकार का एक आधुनिक मत है, इस मतने पवित्र जैन धर्म के अनुयायी मनुष्यों को प्रचण्ड प्रद्वेषानल में होम कर उन की कैसी दुर्दशा की है यह बात अब गुप्त नहीं है, इस मत के प्रचालकों की पोल प्रत्यक्ष कराकर भद्र पुरुषों को इस गड्ढे में पड़ते बचाना सजन पुरुषों का काम है, इसी विचार से “जैन-भिक्षु" नाम के किसी शासन प्रेमी लेखक ने " कोरटा तीर्थ " शीर्षक लेख में इस मत के प्रवर्तक राजेन्द्र-मूरिजी के कतिपय अनुचित कार्यों का दिग्दर्शन कराया था, इस हितोपदेश का असर ऐसा हुआ; जैसा सुगृही के उपदेश से मूर्ख
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