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त्रिस्तुतिक- मत-मीमांसा |
जल्दी छपवा देने के लिये जालोर, आहोर, गुड़ा, हरजी, तखतआदि अनेक शहर गांवों के संघ और शासनप्रेमी सज्जनों की प्रार्थना भी कई दिनों से हो रही थी, तथापि विहार, शरीर की अस्वस्थता इत्यादि कारणों से छपने में बहुत विलंब हो गया है । इस के लिए पूर्वोक्त संघ और सज्जनों से क्षमा चाहता हूं । निवेदन
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यह एक सामान्य नियम हैं कि प्राणीमात्र अपनी अनुकूलता और प्रतिकूलता को देख के वस्तु का ग्रहण और त्याग करते हैं । इसी नियमानुसार इस पुस्तक का आदर और अनादर होगा । जिन को यह अनुकूल होगी वे बड़े चाव से पढ़ेंगे, और जिन के लिये यह प्रतिकूल है वे इसे देख के भी चिढ़ेंगे - इस की सत्यता और उपयोगिता में शंका करेंगे। परंतु दोनों प्रकार के पाठकों को मेरा तो यही निवेदन है कि आप को खुशी और नाराज होने की कुछ जरूरत नहीं है। आप को तो पक्षपात को छोड़ के सिर्फ उसी की तरफ लक्ष्य देना चाहिये जो इस में सत्यतत्त्व रहा हुआ है | तथास्तु | ।
ता. १३-५-१७ बड़ौदा.
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मनि कल्याणविजय.
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