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प्रस्तावना |
साहचर्ययोग से भी बहुधा वस्तु में गुण दोष की सृष्टि हो जाती है । अनुभवसिद्ध बात है कि अतिशीतल वस्तु भी प्रबल अनि के संबन्ध से प्रायः अपने सहज स्वभाव को छोड के उष्णता को धारण कर ही लेती है।
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इस पुस्तक में 'उत्तरदानपत्र ' की भाषासंबंधी अशुद्धियों की तरफ लक्ष्य न करके सिर्फ विषय की अशुद्धियों की ही मीमांसा की गई है, क्यों कि लेखकों की भाषा तो एसी अशुद्ध है कि अगर इस के सम्बन्ध में कुछ लिखने बैठें तो दूसरी कई पुस्तकें बन जायें, पर ऐसा करने की कुछ जरूरत नहीं है ।
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तथा प्रकृत पुस्तक में उध्धृत किये हुए ' उत्तरदान पत्र के फिकरों में जो अशुद्धियां हैं उन का उत्तरदाता मैं नहीं हूं, क्यों कि मैने तो उस पत्र में से फिकरे ले कर ज्यों के त्यों इस में दाखिल किये हैं, इस लिये इनके उत्तर दाता उक्त पत्र के लेखक ही हैं: मैं नहीं ।
विशेषता -
यद्यपि इस तीन के मत के खंडन में आजतक अनेक पुस्तकें छप चुकी हैं, तथापि पाठकमहाशय इस पुस्तक में कुछ विशेषता अवश्य पायेंगे। कारण कि अमुक विषय की सामग्री जितनी मुझे मिली है उतनी पहले के लेखकों को शायद ही मिली हो । अतएव मैं यह कहने को समर्थ हूं कि इस में लिखी हुई सभी बातों को प्रमाण पुरःसर सिद्ध करने को तैयार हूं, जिस को पूछना हो वह खुशी के साथ पूछ लेवे ।
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विलम्ब का कारण
जो कि यह पुस्तक कभी की तैयार हो गई थी, और इसे
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