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समस्तगुण जोग्य सेठ पोरवाड जसुजी चतुरभुजजी और समस्त समकिति श्रावकां जोग्य श्रीभीनमालसुं समस्तसंघ साधम लिखावतां परणाम पंचावसी इहां श्रीगुरुदेवप्रतापथी सुखसाता वर्ते छे आप का सुखसाता का पत्र आयो श्रीजालोर ने धनराजजी मुता उपरे सो हमारे यहां भेज्यो वांची बडा खुसी हुवा आप सरिखा श्रावक धन्य हे सो मुनीराजरी खबर लेता रहे मे तो अजाछा मारे तो यहां पहली इस्या मारगने समझताइ नहीं पिण श्रीजीरा शिष्य कीर्तिचंद्रजी माने धर्म मारग वतायो जद मालुम पडी हमे मारा भाग्य उदेसुं श्री पूज्य आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीराजेन्द्रसूरीसरजी पिण चोमासे अठे विराजे हे ठाणु ८ सुं ओर साधवीयांजी ठाणु तीन सुं विराजे हे सो घणा भवी प्राणी समकित पाम्या हे घणा पामसी खेत्र सुद्ध होसी महालाभ ले रह्या हे भाइजी इस्या आचार्य महाराज विना धर्म कुण बतावे आपरा गुण सुणने माने पिण द्रढता होवे हे ओर अठे श्रीसविकालिकजी टीका सहीत तो वच्यो ने हमे उपासक दसागजी बचे हे उपर प्रतिक्रमण सूत्र टीका वंचीजे हे श्रावक श्रावकण्यां तिथीये तीन से च्यार से सुणे हे हमे दिन २ अधिक वखाण मे बधे हे ओर पंचरंगी तप दोय तो हुवा फेर हुसी पडिकमणादिक किरिया सुद्ध होवे हे सर्व वात का आनंद वरते हे अमंच पाठसाला अध्यापक पन्नालालजी कीयो तरजमो माघ का सर्ग तीन को ओर किरात सरग २ दोय को जमले सर्ग ५ को तरजमो श्लोक ५५१० आसरे आय पुगो ने श्लोक २१५०१ आसरे आगे इणारा आय पुगा हे जमले श्लोक २७०११ सतावीस हजाररे आसरे आय पुगो ने कोमदीरा उत्तरार्द्धरा तरजमारा पत्र ४ आय पूगा हे सो जाणसी ओर कोमदीरो तरजमो तुरत भेजावसी अठे लेया खोटी होय हे सो
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