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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
( राजेन्द्रसरि ) जी बने इसका वृत्तान्त और ब्राह्मणों के द्वारा ग्रन्थ बनवाना इत्यादि जो जो ऐतिहासिक बातें लिखी हैं वे भी कल्पित या सुनी सुनाई नहीं, किंतु खुद राजेन्द्रमूरिजी के हाथों से लिखे हुए-पत्र पुस्तक तथा उन के साधुओं के और श्रावकों के लिखे हुए खत पत्र और डायरी आदि के आधार से लिखी हैं । जो कि विस्तार के भय से उन सब प्रमाणों को इस पुस्तक में ज्यों के त्यों नहीं लिखा, तथापि जो हकीकत लिखी है वह सब उन्हीं के अनुसार है, बलके उन से कम है पर ज्यादा नहीं।
जिन प्रमाणों के आधार पर यह पुस्तक लिखी गई है उन में का सिर्फ एक पत्र यहां नमूने के तौर पर उधृत कर देता हूं जो राजेन्द्रमूरिजी की आज्ञासे उन के भीनमाल के श्रावकों ने रतलाम के श्रावकों को लिखा था । पाठकमहाशय देखेंगे कि मैने जो कुछ लिखा है वह असत्य नहीं है।
॥ श्री ॥
" सिद्ध श्री नमी शंतिने लिखु पत्र सुविचार ।
मंगलमालवमंडले संघसकलसिरदार रत्नपुरि नगरे सिरे स्वामिबंधव हेत ।
धर्मरागसुं नगरनो गुणगण गणीने लेत ॥२॥ लजादिक गुणगणनिधी साधी सिरदार ।
गुण इकवीसे गाजता इढिवंत दातार सामायक पोसा प्रमुख पूजा विविध प्रकार ।
तप जप मे नित प्रत वसे समकित सहसंभार ॥ ४ ॥ इत्यादिक गुण दीपता केता करूं वखाण ।
समकितना गुणगणतणो पार न लेह सुजाण ॥५॥
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