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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
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श्रावक रत्नविजयजी को श्रीपूज्य बनाने के लिये वचन दे चुके थे । इस लिये रत्नविजय जी भी इस कार्य के लिये उन्हें बाध्य करें इस में कोई नवाई नहीं है, आहोर आते ही वे श्रावकों को इकट्ठा कर के बोले 'अब मुझे जल्दी से श्रीपूज्य बनना है, लवाजमे-सामग्री के लिये तुम्हारी तर्फ से क्या बन्दोवस्त है ।' उपाश्रय के श्रावकों ने कहा-कितनीक चीजें तो उपाध्यायजी के भंडार में मौजुद हैं और बाकी सिद्धचक्रजी का सामान है उस में से आप को जरूरी चीजें दे देते हैं आप श्रीपूज्य बनिये ।
इस समय निम्न लिखित चीजें श्रावकोंने रत्नविजयजी को भेंट की----
रेशमी गद्दी-तकिया, नं० १ जाजम बड़ी
नं०१ किनखाब का चंद्रोआ नं. १ पिछवाई (पुठिया) नं. १
सोने के वरकवाली स्थापना नं० १ सिवा इम के चांदी की छडी और चामर भी-जो मुनिसुव्रतभगवान् के थे-रत्नविजयजी के सिपुर्द किये । अब रत्नविॐ यजीने ठाकुर साहब को अर्ज की के ' आप हमें परवाना लिख दीजिये कि-' इन को हमने श्रीपूज्य बनाया है और छडी चामर भी हमने दिये हैं ' इस से आप का बडा यश होगा। क्यों कि देते तो महाजन हैं आप को तो सिर्फ चार अक्षर लिखने की ही तकलीफ है।'
यह बात पहले ही कह चुके हैं कि ठाकुर साहब सज्जन पुरुष थे और-लग्न-मुहूर्तादिक आप रत्नविजयजी से पूछा करते
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