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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
श्रद्धा का नमूना' इस लेख का जन्म कैसे हुआ?, आप की इस जिज्ञासा की तृप्ति के लिए कुछ लिख देता हूँ, आप गौर से पढ़ें। ___ कोरटा तीर्थ' शीर्षक लेख ने त्रैस्तुतिक समाज में एक उच्चाटन मंत्र की गरज सारी, इस का पाठ या श्रवण करते ही वे लोग मारे जलन के चिल्लाने लगे, क्रोध से व्याकुल होने लगे और बावरे हो कर इधर उधर दौड़ने लगे, पर निष्फल! इस का प्रतीकार करने वाला कोई उस्ताद नहीं मिला और न इन को शान्ति मिली, तब ‘बाली' निवासी 'ताराचंद्र' नामक एक व्यक्ति को अपने समाज की दया आई, वह जानना कुछ भी नहीं लेकिन
" निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते "
इस कहावत को याद करके प्रतिमंत्र चलाने को प्रवृत्त हुआ। पर उसने यह तो जान लिया था कि जैनभिक्षु के लेख का खंडन करना मानों लोह के चणे चाबणे हैं-इस का उत्तर देना हमारी शक्ति के बाहर है-तब क्या उपाय किया कि उस लेख के पोइंटों (विषयों) को छोड कर मात्र राजेन्द्रमूरिजी की तारीफ के दो फिकरे लिख दिये-छपवा दिये-और यह मान के राजी हो गये कि 'जैनभिक्षु' के लेख का खंडन हो गया।
इस राजेन्द्रमूरिजी की स्तुति से-'अज्ञान अंदघोर मारवाड़' शीर्षक लेख से-उन की अशक्ति देख के जैन-भिक्षु ने भी उन अशक्त-गरीबों-पर लेख द्वारा भी विशेष आक्रमण करना उचित न समझ कर ढांक पिछोडा किस का नाम' इस हेडिंग के एक छोटे से लेख में उन का ढांक पिछोडा खुला कर के विराम ले लिया।
यद्यपि जैनभिक्षु ने दया की खातिर लेख में इन का अधिक मर्मवेध नहीं किया-इन का पीछा छोड दिया, पर कई शासन
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