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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
प्रेमी सज्जनों को यह दया अस्थान मालूम हुई, चाहे जैसे गरीब तो भी आखिरकार तो दुर्जन ! इन की दया करना किस के घर का न्याय ? इसी वक्त तखतगढ़ निवासी श्रावक चिमनलाल जी पेराजजी ने 'अंधश्रद्धा का नमूना' शीर्षक एक विस्तृत लेख दे कर उस राजेन्द्रस्तुति ( अज्ञान अंदघोर मारवाड ) लेख के एक एक पोइंट का युक्ति और प्रमाणों द्वारा प्रत्युत्तर दिया जो ता. २१ फरवरी सन् १९१५ के जैन ' पत्र में आप ने देखा होगा।
बस उसी लेख के खंडन में नवीन लेखक जी प्रवृत्त हुए हैं। आप देखें कि शेर के शिकार में लगे हुए गीदड़ की क्या दशा होती है ।
अटकलपच्चू लेखक जी लिखते हैं कि
" इस ' ढांक पच्छेडा ' लेख से इतना पत्ता लगा कि कोरटा तीर्थ का झूठा लेख लिखने छपाने वाला यह जैनभिक्षु है ! परंतु पूरा पत्ता तो ता. २१ फेब्रुवारी सन् १९१५ का जैन अंक में अंधश्रद्धा का नमूना ' हेइबिल में महाशय ताराचंदजी का लेख की झूठी समालोचना कर लेखक चिमनलाल तखतगढ वाला का नाम से छपवाया, तिसी से मालूम भया कि अंधगुरु का उपासक शिष्य का शिष्य ने यह लेख छपवाया है तब ही ' अंधश्रद्धा का नमूना ' समालोचना का स्थान पर-विषमालोचना प्रकट की है"
यह लेखकों की मान्यता सरासर झूठी है कि 'कोरटा तीर्थ 'ढांक पिछोडा किस का नाम ' और ' अंधश्रद्धा का नमूना' ये तीनों ही लेख एक व्यक्ति के लिखे हुए हैं, यह तो बच्चा भी समझ सकता है कि 'ढांक पिछोडा' और 'अंधश्रद्धा का नमूना'
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