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त्रिस्तुत्तिक-मंत-मीमांसा ।
जालोर में प्रतिमा ऊपर का लेख घिसवाया, गांम कोरटे और गुड़े में घिसवाने का उद्योग किया तो यह शंका हो सकती है कि उनने ओर जगह भी इस प्रकार अनुचित व्यवहार किया होगा वस्तुतः किया ही होगा परंतु उन के अंधभक्त अपने गुरु की अपकीर्ति होने के डर से उस बात को बाहर नहीं लाते ।
लेखक जैनभिक्षु जी की जीभ का उद्धार कराया चाहते हैं, मेरी राय है कि यह काम आप के लिये ही लाभकारक है, क्यों कि उद्धार उसी चीज का होता है जो टूट-फूट गई हो या किसी प्रकार अपवित्र हो गई हो, जैनभिक्षु के सत्य लेख को असत्य कह कर आप की जीभ ने जो अपवित्रता उठाई है। मेरे खयाल से उस अपवित्रता से इस का उद्धार होना ही चाहिये, पर बात कुछ विचारणीय है, दांतों के उद्धार का उपाय बुद्धिमानों ने निकाल दिया, आंखों का उद्धार भी देखा गया है, लेकिन जीभ का उद्धार किस प्रकार करना इस विषय में अभी तक किसी की बुद्धिने काम नहीं किया, तो लेखकों की इस अपवित्र जिहा का उद्धार होगा कैसे ?, शासनदेव करे इस का भी उपाय कहीं निकल जाय !।
यहां तक लेखकों ने जैनभिक्षु के 'कोरटा तीर्थ' शीर्षक लेख के पीछे टॉय टाँय किया जिस का मैने माकूल जवाब दे दिया। ___अब लेखक जी 'अंधश्रद्धा का नमूना' इस लेख की समालोचना करते हुए अपनी बुद्धि का परिशिष्ट खजाना खोलते हैं । मैं भी इन के जौहरों की कीमत करने के लिये तय्यार हूँ ।
पहिले इस बात का इतिहास जानना जरूरी है कि 'अंध
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