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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
यदि कहा जाय कि यह तो उसने उन देवों की पूजा मा. न्यता सांसारिक कार्य के निमित्त की है। तो जवाब यह है कि दूसरा कौन मोक्ष के निमित्त उन्हें पूजता है ? जिसने आप का सम्यक्त्व नहीं लिया वह भी अगर किसी निमित्त पर उन्हें याद करेगा तो सांसारिक दृष्टि से ही, यह तो वह कहता ही नहीं कि 'मोक्ष प्राप्ति के अर्थ मैं इन मिथ्यात्वी देवों की पूजा करता हूं'
और यह भी तो कोई कहता नहीं कि सांसारिक कार्यों के लिए भी मिथ्यात्वी देवों की पूजा निर्दोष है !।
कहने का मतलब यह है कि विना सोचे समझे १०-१२ वर्ष के बालकों को और अज्ञानी लोगों को पूर्वोक्त प्रतिज्ञा करवाना भूल है, क्यों कि वे उसे पाल नहीं सकते । आखिरमें उस नियम को खंडित करके आप ही के मत से महापापी बनते हैं, क्यों कि तुम्हारे ही मत वाले कहते हैं कि 'व्रत नहीं लेनेवाला पापी, और लेकर खंडित करने वाला महापापी, ' फिर बेचारे उन अज्ञानियों को जानबूझ के महा पापी क्यों बनाते हो। ___यह दशा तो हुई देशविरति की, अब सर्वविरति के भी कुछ हालात सुन लीजिये, साधुपन ( सर्वविरति) भी ये लोग जिस तिस पामर मनुष्य को भी दे देते हैं नतीजा यह आता है कि जब मुल्क में सुकाल हो जाता हैं पेट भरने का उपाय सुलभ होता है तब वे दुकालिये पेट के पूजारी अमूल्यचिन्तामणितुल्य चारित्र के उपकरण-रजोहरण, मुहपत्ती विगैरह को कहीं कुंए आदि में फेंक के अपना रस्ता लेते हैं-भाग जाते हैं । इस प्रकार का बनाव वर्ष भर में दो चार वक्त तो बन ही जाता है, और जैनधर्मकी बडी निन्दा होती है, जब कोई शासनरागी उन को ११
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