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प्रस्तावना।
नहीं करना आप की नोटीस ही आप को असभ्य जैनभिक्षु सिद्ध करती है कि आप लिखते हो “ जैनभिक्षुने राजेन्द्रमुरिजी के जो अनुचित कार्य लिखे हैं वे तो किस गिनती में हैं मैं तो उन को पाव आनी भर भी नहीं मानता, उन के संपूर्ण अनुचित कार्यों का खजाना तो मेरे पास है जो खुद राजेन्द्रसूरिजी के हस्ताक्षरों से सिद्ध होता है " जैनभिक्षुजी आप पाव आनी भर तो लिख चुके हो अब आप के गिनती आवे जैसा संपूर्ण खजाना खोलिये राजेन्द्रमुरिजी के हस्ताक्षरों में कुछ लिखने पढने में छद्मस्थपणा का योग से वा वार्तालाप में भूल आवे वह कुछ अनुचित कार्य नहीं कहा जाता है याने भूल कही जाती है अनुचित कार्य तो चोरी जारी का है सो आप साबूती के साथ प्रकट करिये इस लिये हम प्रतिनोटीस देते हैं कि बस आप की तरफ से साबूती के साथ जो खुलासा हो सो जल्दी पेश करें जो उसकी जल्दी खबर ली जावे इति शुभम् ।।
लि.
मयाराम डूंगरदास. पाठकवर्ग ! देखिये एक नोटीस के जवाब में लेखकोंने कितने रंग धारण किये हैं। इस लेख के अक्षर तो आहोर के श्रीमाली ब्राह्मण पूनमचंद के हैं, आखिर में 'लि. मयाराम डूंगरदाश 'इस प्रकार का नाम किसी दूसरे का ही, और भेजने वाला कोई ओर ही, जिन के नाम से मैने नोटीस दी थी उन का इस में नाम ही नहीं !, क्या यह सब लेखकों की जालसाजी नहीं है।
इस उटपटांग और उद्धताई से भरे हुए जवाब को पढ़ के मुझे तो क्या सब किसी को कहना पड़ेगा कि अब तो इस पुस्तक
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