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________________ त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा । इस लोकोक्ति न्याय से आप का भ्रम आप को ही खाता है हमने तो जैनभिक्षुजी को भी जैसा उसने असभ्यताका लेख लिखा है तैसा ही उसी को वैसा ही तौरसे जवाब लिखा है परन्तु कुछ गालि प्रदानादि नहीं दिया है तो आप को. तो आप का लिखना ही असत्य ठहराता है कि "मैं बेधडक कहता हूँ कि जैनभिक्षुनामा लेखक मैं नहीं हूं"जो आप जैनभिक्षु नामा लेखक नहीं हो तो लेखक चिमनलाल तखतगढ वाला का नाम से महाशय ताराचंदजी का लेखपे अंधश्रद्धा का नमूना लेख क्या विष्णु, इसलामी ईशाई, भिक्षुने छपवाया है इस उक्त लेख का आशय आप ही पुकार रहा है कि लेखक चिमनलाल का तो नाम है और लिखने छपवाने वाले तो आप ही जैनभिक्षु हो तैसे ही कोरटातीर्थ का असभ्य लेख भी आप छपवाने वाले कदाचित् नहीं होगे तो भी आपकी सामिलात विना लिखने छपवाने का असंभावित है क्यों कि श्री जालोर का किल्ला का मंदिर की तथा कांकरिया वासका मंदिर की झूठी अशुद्धियां और प्राचीन आचार्यों का जीर्ण लेख मुसलमान शिलावट के पास घिसवा डालना इत्यादि लेख लिखने छपवाने वाला दूसरा कोई भी दिखता नहीं आप ही जैनभिक्ष हो तथापि आप अपनी अज्ञतासे प्रथम ही गेरकायदा करके अब बेकायदासे नोटीस देते हो यह ही आप की अज्ञताकी पूर्ण निशानी है आप के ऊपर हमने झूठे आक्षेप नहीं किये है हमने तो अंधगुरु अंधश्रद्धावाले जैनभिक्षु पर सच्चे आक्षेप किये हैं आप उनका बदला लेना चाहते होतो अवश्य ही ले लेना उस किताब की योग्यतानुसार उत्तर लिखने की कोशीस करना परन्तु याद रखना कि प्रथम जैनभिक्षु के बारेमें जैसे झूठ के ऊंट दोडाये है नेमे टोडाके जैनधर्मकी और आपकी निंदा कराने की कोशीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003120
Book TitleTristutik Mat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherLakshmichandra Amichandra Porwal Gudabalotara
Publication Year1917
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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