SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २३ ] स्थने माटे तो कहेतुं ज शुं ? अप्रशस्त आरंभमां डूबेल जीवननी बेचार घडीओ पण धार्मिक वातावरणमां व्यतति थाय तो महान् लाभदायक गणवी जोईये. दिवसभर सालडां रंगवानां कारखानामां काम करनार मजूर छूटो थईने ज्यारे घडीभर बागमां फरे छे ते वखते तेनी मानसिक प्रसनता केवी होय छे, ए तो तेनो भुक्तभोगी ज जाणी शके छे. पूजा ओनुं पौर्वापर्य उक्त भावपूजा द्रव्यपूजाओमां पौर्वापर्य शुं छे ! प्रथम भाव अने पछी द्रव्य ? अथवा प्रथम द्रव्य अने पछी भाव ? घणी धार्मिक क्रियाओने अंगे एम संभळाय छे के प्राथमिक द्रव्य क्रियाओनां पगथियां वटावीने मनुष्य भाव क्रियाओ सुधी पहोंचे छे तेम पूजाने अंगे समजवुं के बीजी रीते ? एनो उत्तर ए छे के द्रव्य अने भाव बने अन्योन्यविद्ध छे छतां बेमां पौर्वापर्य तो छे ज. प्रथम मनुष्यनी भावना थई के म्हारा देवने अमुक द्रव्योवडे पूजुं ' अने 'ए भावनानुसार तेणे द्रव्य सामग्री जोडीने इष्टनी पूजा करी' आमां प्राथमिकता भावने मले छे. वास्तवमां पण भाव पूजानो नंबर पहेलो ज छे, जे वखते मानव जातिने दान के समर्पणनुं कशुं ज्ञान न हतुं ते वखते पण तेमां विनीतता, कृतज्ञता आदि भावो तो हता ज अने कृतज्ञतादि भावनामांथी ज आगल जतां समर्पणबुद्धि उत्पन्न थतां द्रव्य " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003118
Book TitleJina Pooja Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1957
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy