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[२४] पूजा उत्पन्न थई, ए वातनुं सूचन अमो पहेला पण करी आव्या छीये. मूर्तिपूजा करवी जोईये के नहिं ? __ भारतवर्षमा ज नहिं पण मूर्तिपूजा मानवा न मानवाना झगडा संसारभरमां फेलायेला छे. एने लईने लोहीनी नदीओ वही छ अने हजारो निर्दोष मनुष्योना प्राण गया छ छतां आ प्रश्ननुं कोई निराकरण करी शक्युं नथी के 'मूर्तिपूजा करवी जोईये के नहि" . माणस केटलो भोलो छ ? ते पोते दिवसमां केटलीय सजीव निर्जीव मूर्तियोनां दर्शन करे छे, तेमनी पूजा करे छे, अने बीजाओने ए विषे पूछतो फरे छे ? ते बापदादाओ, मुरब्बी मसोद्दीओ, अधिकारी अफसरोनुं बहुमान करे छे, तेमनी आज्ञा उठावे छे, शिर नमावे छे एटलं ज नहिं पण देशनी नामांकित व्यक्तियोनां समाधिस्थानो, स्मारको अने कबरो उपर पुष्पांजलियो चढावे छे, मक्का-मदीना हज करवा जाय छ, मस्जीदमां जईने निमाज़ पढे छे, जेरुसलाम जई बप्तिस्मा ले छे अने चर्चमां माता मेरी अने जेसस्. क्राइस्टना चित्रनी सामे ऊभो रही प्रार्थना करे छे. शुं ए बधी सजीव-निर्जीव मूर्तियोनी पूजा नथी ? खरी रीते जोतां वस्तुस्थिति ए छे के मूर्तिपूजाने अंगे खास विरोध नथी पण विरोध मात्र तेनी विधिने अंगे छे अने विरोधनुं कारण
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