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[२२] तेथी जे समय तेमनो पूजाभक्तिमां वीते छ तेटलो समय तेओ असद्-सांसारिक आरंभोथी बचे छ ए दृष्टिए पण पूजा गृहस्थोने माटे 'असदारंभनिवृत्तिफला' बने छे, ए वस्तुनो समजदार माणसोए ऊंडो विचार करवो घटे छे.
पूजा पूज्यने उपकारक नथी छतां पूजकनो ता उपकार थाय ज छे, जेम मंत्रस्मरणथी मंत्रनो उपकार थतो नथी छतां साधकने तेथी लाभ थाय छे, अग्नि सेवा करवाथी अग्निनो कोई उपकार थतो नथी छतां निकट जई तेने सेवन करनारनी शीतपीडा दूर थाय छे, एज प्रकारे जिनपूजामा पण समजवू बोईए. भले पूजाथी पूज्यने कंई उपकार न थाय पण पूजा करनारने तात्कालिक भावोल्लासद्वारा जे श्रद्धाशुद्धि अने जिननकट्यनो लाभ थाय छे ए उपकार कंई जेवो तेवो नथी. आ उपकारनी आगल लागेल आरंभ कशा हिसाबमा आवतो नथी. जेओ पोताना शरीर आदिने माटे जेमतेम कायवधमां प्रवृत्तिओ करे छ तेमनुं जिनपूजामां आरंभ समजी दूर रहेg ए वास्तवमां तेमनो व्यामोह छ के जेथी तेओ दिशा भूली गया छे. बाकी ज्ञानीओ तो कहे छे"अप्पेण बहु भेसेजा, एयं पंडियलक्खणं" अर्थात्-थोडाना भोगे घणुं मेलववानी इच्छा करवी ए पंडितनुं लक्षण छे.' गृहस्थधर्मी ज नहि सर्वविरतिधारी साधु पण देशकालने अनुसरीने विशेष लाभy कारण जाणीने सामान्य अपवाद मार्गनुं आलंबन लेवा छतां आराधक गणाय छे, तो गृह
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