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[२१ ते शास्त्रथी निषिद्ध छे. वळी पूजा पूज्यनो उपकार करनारी पण नथी, तो पछी ए परिशुद्ध केम कही शकाय ?
शंकानो उत्तर आपता आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी कहे छ के-जिनपूजामां यद्यपि क्वचित् कायवध थाय छे तो पण ते यूजा गृहधर्मियोने माटे तो विशुद्ध ज होय छे, कूपना दृष्टान्तथी. (कूपनो दृष्टान्त आ प्रमाणे छे-जलना अभावे ग्रामीणो दुःखी हता, तेओए कोई जलस्रोतवेत्ताने बोलावीने पूछयु. तेणे भूमिना विभागो जोईने एक प्रदेश बतावीने कडं-आ स्थले आटला हाथ नीचे जल निकलशे. लोकोए सारो समय जोईने त्यां खोदवा मांडयु. खोदवामां दिवसोना दिवसो वीती गया, खोदनाराओ थाके भराता, धूल खरडाता छतां भावी सुखनी आशाथी तेओ खोदता खोदता जलवेत्ताए बतावेल ऊंडाण सुधी पहोंच्या अने खरे ज तेमनी आशा पूरी करनारो जलस्रोत प्रगटयो, लोकोना आनंदनो पार न रह्यो. लोको नााह्या, थाक उतार्यो, पीने तरस बुझावी अने सदानुं जलकष्ट दूर थयु. ए ज दृष्टान्ते पूजा करनारने सामान्य रीते आरंभजन्य हिंसारूप आश्रव लागे, द्रव्यनो खर्च करवो पडे अने समयनो भोग आपको पडे पण पूजाथी भावविशुद्धि अने श्रद्धाविशुद्धि द्वारा तेने जे लाभ मले छे तेना मुकाबलामां तेणे आपेल भोग तथा तनिमित्तक आस्रव कशी गणनामां होतां नथी.)
वली गृहस्थो असद् आरंभमां प्रवृत्ति करनारा होय छे
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