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________________ २४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण राष्ट्रभाषा में अपने मन की बात जनता के सामने रख देता हूं। उससे यदि जनता आकृष्ट होती है तो यह उसकी गुणग्राहकता है । मैं तो मात्र निमित्त उनकी प्रवचन शैली का सबसे बड़ा वैशिष्ट्य चित्रात्मकता है । प्रवचन के मध्य जब वे किसी कथा को कहते हैं तो ऐसा लगता है मानो वह घटना सामने घट रही है। स्वरों का उतार-चढ़ाव तथा शरीर के हाव-भाव सभी उस घटना को सचित्र एवं सजीव करने में लग जाते हैं । उनकी प्रवचन शैली में चमत्कार आने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह भी है कि वे सभा के अनुरूप अपने को ढाल लेते हैं । डाक्टरों की एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए वे कहते हैं "माज मैं डाक्टरों की सभा में आया हूं तो स्वयं डाक्टर बनकर आया हूं । जो व्यक्ति जहां जाये उसे वहीं का हो जाना चाहिए। आप डाक्टर हैं तो मैं भी एक डाक्टर हूं। आप देह की चिकित्सा करते हैं, तो मैं आत्मा की चिकित्सा करता हूं । आप विभिन्न उपकरणों से रोग का निदान करते हैं तो मैं मनुष्यों के हृदय को टटोलकर उसकी चिकित्सा करता हूं। आप प्रतिदिन नये-नये प्रयोग करते रहते हैं तो मैं भी अपनी अध्यात्म प्रचार पद्धति में परिवर्तन करता रहता हूँ। आचार्य तुलसी ने अपने प्रवचनों में अनेकांत शैली का प्रयोग किया है। अनेक स्थानों पर तो वे जीवन के अनुभवों को भी अनेकांत शैली में प्रस्तुत करते हैं । अनेकांत शैली का एक अनुभव निम्न पंक्तियों में देखा जा सकता है.---"मैं अकिंचन हूं। गरीब मानें तो सबसे बड़ा गरीब हूं और अमीर माने तो सबसे बड़ा अमीर हूं। गरीब इसलिए हूं क्योंकि पूंजी के नाम पर मेरे पास एक नया पैसा भी नहीं है और अमीर इसलिए हूं क्योंकि कोई चाह नहीं है।" उनकी प्रवचन शैली का वैशिष्ट्य है कि वे समय के अनुसार अपनी बात को नया मोड़ दे देते हैं। उनके प्रवचनों की प्रासंगिकता का सबसे बड़ा कारण यही है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव सबको देखते हुए वे अपनी बात कहते हैं । होली के पर्व पर लोगों की धार्मिक चेतना को झकझोरते हुए वे कहते हैं. "आज होली का पर्व है । लोग विभिन्न रंग घोलते हैं, तो क्या मैं कह दूं कि आज का मानव दुरंगा है । क्योंकि उसके पास दो पिचकारियां हैं । दीखने में कुछ और है और कहने में कुछ और। वह बातों में इतना चिंतनशील लगता है मानो उससे अधिक धार्मिक कोई और है या नहीं। मन्दिर में जब १. बहता पानी निरमला, पृ० १२० २. जैन भारती, २८ अक्टू० १९६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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