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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
संस्कृति के स्वर
संतता संस्कृति की वाहक होती है अतः संत ही अधिक प्रामाणिक तरीके से सांस्कृतिक तत्त्वों की सुरक्षा कर सकते हैं। आचार्य तुलसी के प्रवचन माहित्य में भारतीय संस्कृति का आलोक सर्वत्र बिखरा मिलेगा। भारतीय चिंतनधारा में उनकी विचारणा एक नया द्वार उद्घाटित करने वाली है । उनकी दृष्टि में संस्कृति कोई अनगढ़ पाषाण का नाम नहीं अपितु चिंतन, अनुभव और लगन की छनियों से तराशी गयी सुघड़ प्रतिमा संस्कृति है। उनके विचारों में संस्कृति पहाड़ों, तीर्थक्षेत्रों और विशाल भवनों में नहीं अपितु जन-जीवन में होती है । इसी सूक्ष्म एवं विशाल दृष्टि के कारण उनके प्रवचनों में लोकसंस्कृति को उन्नत एवं समृद्ध बनाने के अनेक तत्त्व निहित हैं । भारतीय संस्कृति में पनपी जड़ता को उन्होंने प्रवचनों के माध्यम से तोड़ने का भरसक प्रयत्न किया है।
उनका स्पष्ट चिंतन है कि पाश्चात्त्य संस्कृति की नकल करके हम न तो उन्नत बन सकते हैं और न ही अपने अस्तित्व की रक्षा करने में समर्थ हो सकते हैं । वे अनेक बार अपने प्रवचनों में इस खतरे को प्रकट कर चुके हैं कि भारतीय संस्कृति को विदेशी लोगों से उतना खतरा नहीं, अपितु इस संस्कृतिमें जीने वालों से है क्योंकि वे अपनी संस्कृति को महत्त्व न देकर दूसरों को महत्त्व प्रदान कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने के सूत्र वे समय-समय पर अपने प्रवचनों में प्रदान करते रहते हैं--"अणुव्रतों के द्वारा अणुबमों की भयंकरता का विनाश हो, अभय के द्वारा भय का विनाश हो, त्याग के द्वारा संग्रह का ह्रास हो, ये घोष सभ्यता, संस्कृति और कला के प्रतीक बनें तभी जीवन की दिशा बदल सकती है।"
संस्कृति के संदर्भ में संकीर्णता की मनोवृत्ति उन्हें कभी मान्य नहीं रही है । वे हिन्दू संस्कृति को बहुत व्यापक परिवेश में देखते हैं । हिन्दू शब्द की जो नवीन व्याख्या आचार्यश्री ने दी है, वह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में पर्याप्त है। वे कहते हैं-'यदि हिंदू शब्द की गरिमा बढ़ानी है तो उसे वैदिक विचारों के संकीर्ण घेरे से निकालना होगा। हिंदुत्व के सिंहासन पर जब तक वैदिक विचार छाया रहेगा, तब तक जैन, बौद्ध और अन्य धर्म उनके निकट कैसे जा सकेंगे ? अतः हिन्दू शब्द को धर्म विशेष के साथ जोड़ना उसे साम्प्रदायिक और संकीर्ण बनाना है।"२
संस्कृति को व्याख्यायित करती उनकी निम्न पंक्तियां कितनी वेधक बन पड़ी हैं- "हिंदू होने का अर्थ यदि मुसलमान के विरोध में खड़ा होना हो
१. एक बूंद : एक सागर, पृ० १४२० २. अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत, पृ० ८०,८१
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