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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण उज्जीवित करने का महत प्रयत्न है। पुरुषार्थहीन एवं अकर्मण्य जीवन के वे घोर विरोधी हैं। उनकी दृष्टि में तलहटी से शिखर तक पहुंचने का उपाय पुरुषार्थ है । पुरुषार्थी के द्वार पर सफलता दस्तक देती है, वह हारी बाजी को जीत में बदल देता है । इसके विपरीत अकर्मण्य व्यक्ति की क्षमताओं में जंग लग जाता है और वह कुछ न करने के कारण उम्र से पहले ही बूढ़ा हो जाता है । समाज की अकर्मण्यता को झकझोरती हुई उनकी यह उक्ति कितनी वेधक है-“यह एक प्रकार की दुर्वलता है कि व्यक्ति खेती के लिए श्रम तो नहीं करता पर अच्छी फसल चाहता है। दही मथने का श्रम नहीं करता, पर मक्खन पाना चाहता है । व्यवसाय में पुरुषार्थ का नियोजन नहीं करता, पर धनपति बनना चाहता है। पढ़ने में समय लगाकर मेहनत नहीं करता, पर परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना चाहता है। ध्यान-साधना का अभ्यास नहीं करता, पर योगी बनना चाहता है।'' इसी सन्दर्भ में उनकी निम्न अनुभूति भी प्रेरक है - "मेरे मन में अनेक बार विकल्प उठता है कि सूरज आता है, प्रकाश होता है। उसके अस्त होते ही फिर अंधकार छा जाता है। प्रकाश और अन्धकार की यात्रा का यह शाश्वत क्रम है । ये काम करते-करते नहीं अघाते तो फिर हम क्यों अघाएं ?" शताब्दियों से दासता के कारण जर्जर देश की अकर्मण्यता को झकझोरने में उनका प्रवचन साहित्य अहंभूमिका रखता है। उनकी हार्दिक अभीप्सा है कि पूरा समाज पुरुषार्थ के वाहन पर सवार होकर यात्रा करे और जीवन के सीधे सपाट रास्ते में सृजन का एक नया मोड़ दे। 'चरैवेति, चरैवेति' का आर्षवाक्य उनके कण-कण में रमा हुआ है अतः अकर्मण्यता और सुविधावाद पर जितना प्रहार उनके साहित्य में मिलता है, उतना अन्यत्र दुर्लभ अडोल आत्मविश्वास । उनका प्रवचन साहित्य हमारे भीतर यह आत्मविश्वास जागृत करता है कि समस्या से घबराना कायरता है । समस्याएं मनुष्य की पुत्रियां हैं अत: वे हर युग में रहती हैं, केवल उनका स्वरूप बदलता है। उनका कहना है कि "समस्या न आए तो दिमाग निकम्मा हो जाएगा । मैं चाहता हूं कि समस्याएं आएं और हम हंसते-हंसते समाधान करते रहें। मनुष्य द्वारा उत्पादित समस्याओं का समाधान करने के लिए आकाश से कोई देवता नहीं आएगा, १. एक बूंद : एक सागर, पृ० १३६३ २. वही, पृ० १६९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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