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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन ४१ आचार्यकाल के पचास वर्ष पूर्ण होने पर वे संगठन मूलक १३ सूत्रों को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं । उनमें से कुछ अनुभव-सूत्र इस प्रकार हैं९. वही संगठन अधिक कार्य कर सकता है, जो अनुशासन, ज्ञान और चरित्र से सम्पन्न होता है । २. व्यापक क्षेत्र में कार्य करने के लिए दृष्टिकोण को उदार बनाना जरूरी है | संकीर्ण दृष्टि वाला कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता । ३. प्रगति के लिए प्राचीन परम्पराओं को बदलना आवश्यक है। किंतु विवेक उसकी पूर्व पृष्ठभूमि है । ४. प्रगति और परिवर्तन के साथ संघर्ष भी आता है । उसे झेलने के लिए मानसिक संतुलन आवश्यक है | असंतुलित व्यक्ति संघर्ष में विजयी नहीं हो सकता । ५. संगठन की दृष्टि से संस्था का मूल्य निश्चित है । पर उससे भी अधिक मूल्य है गुणात्मकता का। मैंने प्रारंभ से ही व्यक्ति-निर्माण पर ध्यान दिया । उसमें मुझे कुछ सफलता मिली। इसका मुझे संतोष है । ६. केवल विद्या के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाला संघ चरित्र की शक्ति के बिना चिरजीवी नहीं हो सकता, तो केवल चरित्र को मूल्य देने वाला जनता के लिए उपयोगी नहीं बन सकता । ७. सुविधावादी दृष्टिकोण मनुष्य को कर्तव्यविमुख, सिद्धांतविमुख और दायित्व विमुख बनाता है ।" ये अनुभव उनके जीवन की समग्रता एवं आनंद को अभिव्यक्त करते हैं। इस प्रकार के अनुभूत सत्यों का संकलन यदि उनके साहित्य से किया जाए तो एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बन सकता है । ये अनुभव सम्पूर्ण मानव जाति का दिशादर्शन करने में समर्थ हैं । पुरुषार्थ की परिक्रमा आचार्य तुलसी पुरुषार्थ की जलती मशाल हैं । उनके व्यक्तित्व को एक शब्द में बन्द करना चाहें तो वह है- पौरुष । उनके पुरुषार्थी जीवन ने अनेक विरोधियों को भी उनका प्रशंसक बना दिया है। इसके एक उदाहरण हैं -- ख्यातिप्राप्त विद्वान् पं० दलसुखभाई मालवणिया । वे आचार्यश्री के पुरुषार्थी व्यक्तित्व का शब्दांकन करते हुए कहते हैं चौकसी रखनी होती है और निरन्तर अप्रमत्त बने आचार्य तुलसी में मैंने इस पुरुषार्थ की झांकी पाई है। हैं और न लेने देते हैं ।" उनका प्रवचन साहित्य श्रम की संस्कृति को " प्रमाद के प्रवेश के लिए जीवन में असंख्य भाग हैं । उन सबकी रहना होता है । वह न चैन लेते सफर : आधी शताब्दी का, पृ० ५०-५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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