________________
४
.
आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण गोशाला के सामने बड़े-बड़े वृक्ष थे। हमने उन्हीं की छाया में पड़ाव डाल दिया। लगभग दो तीन घंटे हम वहां रहे। वहां बैठकर आगम का काम किया, साहित्य की चर्चा की और भी आवश्यक काम किए। हमारी इस घटना के साक्षी थे-प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्रजी। उन्हें महत आश्चर्य हुआ कि इस प्रतिकूल वातावरण में भी हम पूरी निश्चिन्तता से काम कैसे कर सके ?' अनुभूत सत्यों की अभिव्यक्ति
उनके प्रवचनों की सरसता का हेतु संस्मरणों की पुट तो है ही, साथ ही वे समय-समय पर अपने जीवन के अनुभूत सत्यों को भी प्रकट करते रहते हैं जिससे यह साहित्य जीवन्त एवं जीवट हो गया है । बट्टेड रसेल अपने जीवन के अनुभवों को इस भाषा में प्रस्तुत करते हैं- "अपने लम्बे जीवन में मैंने कुछ ध्रुव सत्य देखे हैं - पहला यह कि घृणा, द्वेष और मोह को पल-पल मरना पड़ता है। दूसरा यह कि सहिष्णुता से बड़ी कोई प्रेम-प्रीति नहीं होती। तीसरा यह कि ज्ञान के साथ-साथ विवेक को भी पुष्ट करते चलो, भविष्य की हर सीढ़ी निरामय होगी"। आचार्य तुलसी ने ऐसे अनेक मार्मिक भनुभूत सत्यों को समय-समय पर अभिव्यक्त किया है । आचार्य काल के २५ वर्ष पूरे होने पर वे अपने अन्तर्मन को खोलते हुए कहते हैंमैंने अपने जीवन में कुछ सत्य पाए हैं, उन्हें मैं प्रयोग को कसौटी पर कसकर जनता के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं० विश्व केवल परिवर्तनशील या केवल स्थितिशील नहीं है । यह परिवर्तन
और स्थिति का अविकल योग है। ० परिस्थिति-परिवर्तन व हृदय-परिवर्तन का योग किए बिना समस्या का
समाधान नहीं हो सकता । केवल सामाजिकता और केवल वैयक्तिकता को मान्यता देने से
समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। ० वर्तमान और भविष्य-दोनों में से एक भी उपेक्षणीय नहीं है। ० भौतिकता मनुष्य को विभक्त करती है। उसकी एकता अध्यात्म के क्षेत्र
में ही सुरक्षित है। कोई भी धर्म-संस्थान राजनीति और परिग्रह से निलिप्त रहकर ही अपना अस्तित्व कायम रख सकता है। आध्यात्मिक एकता का विकास होने पर ही सह-अस्तित्व का सिद्धांत क्रियान्वित हो सकता है तथा जातिवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद,
प्रांतवाद और राष्ट्रवाद की सीमाएं टूट सकती हैं। १. दीया जले अगम का, पृ० १८-१९ २. अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत, पृ० १४१-४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org