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________________ ३८ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण सत्तालोलुप दृष्टि पर कड़ा प्रहार करते हुए उनका कहना है-"जिस समय मत के साथ प्रलोभन और भय जुड़ जाये, वह खरीदफरोख्ती की वस्तु बन जाये, उसके साथ मार-पीट, लूट-खसोट और छीना-झपटी के किस्से बन जाए, इससे भी बड़े हादसे घटित हो जाये। यह सब क्या है ? क्या आजादी की सुरक्षा ऐसे कारनामों से होगी ? ...." "ऐसे घिनौने तरीकों से विजय पाना और फिर विजय की दुन्दुभि बजाना, क्या यह लोकतंत्र की विजय है ? ऐसी विजय से तो हार भी क्या बुरी है ?" केवल विज्ञान पर आश्रित रहकर यांत्रिक एवं निष्क्रिय जीवन जीने वाले देशवासियों को प्रतिबोधित करते हुये उनका कहना है-"जिस देश के घर-घर में कम्प्यूटर और रोबोट उतर आये, रेडियो और टी० वी० का प्रभाव छा जाए, मनुष्य का हर काम स्वचालित यन्त्रों से होने लगे, मनुष्य यन्त्र की भांति निष्क्रिय होकर बैठ जाए, क्या वह देश विकसित या विकासशील बन सकता है ? ___केवल बुराईयों के प्रति अंगुलिनिर्देश ही नहीं, वर्ग-विशेष की विशेषताओं को सहलाया भी गया है अतः उनके प्रवचनों में संतुलन बना हुआ है । सदियों से शोषित एवं पिछड़ी महिला जाति के गुणों को प्रोत्साहन देते हुए वे कहते हैं --"मैं देखता हूं आजकल बहिनों का साहस बढ़ा है, आत्मविश्वास जागृत हुआ है, चितन की क्षमता भी विकसित हुई है और उनमें जातीय गौरव की भावना प्रज्वलित हई है।"२ । वेधकता आचार्य तुलसी के प्रवचन इतने वेधक होते हैं कि अनायास ही अन्तर में झांकने को विवश कर देते हैं । सम्भवतः दर्शन और अध्यात्म के सैकड़ों ग्रंथ पढ़ने के बाद भी व्यक्ति के मस्तिष्क में वह विचार किरण फूटे या न फूटे जो आचार्यश्री के प्रवचन की कुछ पंक्तियों में स्फुरित हो जाती है। उनकी निम्न पंक्तियां कितनी अन्तर्भेदिनी बन गयी हैं ० "मैं पूछना चाहता हूं कौन नहीं है दास ? कोई मन का दास है, कोई इंद्रियों का दास है, कोई वासना का दास है, कोई वृत्तियों का दास है तो कोई सत्ता का दास है। पहले तो क्रीत होने के बाद दास माना जाता था पर आज तो अधिकांश लोग बिना खरीदे दास हैं।" • "एक शेर या दैत्य पर नियन्त्रण करना सरल है, पर उत्तेजना के क्षणों में अपने आप पर नियन्त्रण कर पाना बहुत बड़ी उपलब्धि है।"३ १. कुहासे में उगता सूरज, पृ० ८८ २. दोनों हाथ : एक साथ, पृ० २८ ३. एक बूंद : एक सागर, पृ० ३२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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