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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
व्यक्ति भी भाग्य ठंडा हो जाने पर दूसरों के सहयोग का मुंहताज बन जाता है। ट्रक का इंजन प्रतिदिन कितने लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचा देता है, कितने भारी भरकम सामान को कहां से कहां पहुंचा देता है पर ठंडा होने पर उसे ढकेलना पड़ता है । वह परापेक्षी हो जाता है ।
प्रस्तुत प्रसंग की स्पष्टता के लिए एक प्रवचनांश को उद्धृत करना भी प्रासंगिक नहीं होगा । 'आत्मा' गांव में पदार्पण करने पर अपने प्रवचन का प्रारम्भ करते हुए आचार्य तुलसी ने कहा - "आज हम आत्मा में आए हैं । आज क्या आये हैं हम तो पहले से ही यहीं थे । आज तो वे लोग भी यहां पहुंच गये हैं जो सामान्यतः बाहर घूमते हैं। बाहर घूमने वाले लोग भटक जाएं यह बात समझ में आती है पर जो वर्षों से 'आत्मा' में वास करते हैं, वे क्यों भटकें ? १
अनेक घटनाओं एवं कथाओं के प्रयोग से उनके प्रवचन में सजीवता एवं रोचकता आ गयी है । इस कारण से उनके प्रवचन बाल, वृद्ध एवं प्रौढ़ सबके लिये ग्रहणीय बन गये हैं । इसके साथ आगम, गीता, महाभारत, उपनिषद्, पंचतंत्र आदि के उद्धरण भी वे अपने प्रवचनों में देते रहते हैं । वर्तमानिक खोज एवं नयी सूचनाओं के उल्लेख उनके गम्भीर एवं चहुंमुखी ज्ञान की अभिव्यक्ति देते हैं ।
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उनके प्रवचन साहित्य की अनेक पुस्तकें आगम सूक्तों एवं अध्यायों की व्याख्या रूप भी हैं । उन प्रवचनों को पढ़ने से ऐसा लगता है कि महावीर वाणी को आधुनिक संदर्भ में नई प्रस्तुति देने का सशक्त उपक्रम किया गया है । महावीर वाणी के माध्यम से आज की समस्याओं का समाधान होने से इस साहित्य में दृढ़ चरित्रों को उत्पन्न करने की क्षमता पैदा हो गयी है तथा - बुराइयों को कुचलकर अच्छाई की ओर बढ़ने की प्रेरणा भी निहित है । 'बूंदबूंद से घट भरे' 'मंजिल की ओर' आदि पुस्तकें आगमिक व्याख्या रूप ही हैं । निर्भीकता
आचार्य तुलसी के प्रवचनों में क्रांति के स्फुलिंग उछलते रहते हैं । उनकी क्रांतिकारिता इस अर्थ में अधिक सार्थक है कि वे अपनी बात को निर्भीक रूप से कहते हैं । वर्ग विशेष की बुराई के प्रति कभी-कभी वे बहुत प्रचंड एवं तीखी आलोचना करने से भी नहीं चूकते। वे इस बात से कभी भयभीत नहीं होते कि उनकी बात सुनकर कोई नाराज हो जायेगा । उनका स्पष्ट कथन है- " मैं किसी पर व्यक्तिगत रूप से प्रहार करना नहीं चाहता पर सामूहिक रूप में बुराई पर प्रहार करना मेरा कर्त्तव्य | वह चाहे व्यापारी वर्ग में हो, राजकर्मचारी में हो या किसी दूसरे वर्ग में । राजनेताओं की
१. पांव पांव चलने वाला सूरज, पृ० ३४९
२. जैन भारती, ७ सित० १९७९
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