SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण और नवीनता लिए हुए हैं। उनके प्रवचनों को ऐसी दीपशिखाएं कहा जा सकता है जो युग-युग तक पीड़ित एवं शोषित जनता का पथदर्शन कर सकती हैं । प्रवचन का वैशिष्ट्य किसी भी प्रवचनकार की सबसे बड़ी विशेषता उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता है । यद्यपि यह क्षमता एक राजनेता में भी होती है पर नेता जहां ऊपर से चोट करता है, वहां आत्मसाधक प्रवचनकार का लक्ष्य अन्तर्मानस पर चोट करना होता है। आचार्य तुलसी के प्रवचन राजनेता की भांति कोरी भावुकता नहीं बल्कि विवेक को जागृत करते हैं । भांति केवल स्वार्थ पर नहीं बल्कि परमार्थ पर रहती है । उनकी दृष्टि नेता की आचार्य तुलसी सत्यं शिवं सुन्दरं के प्रतीक हैं । यही कारण है कि उनके प्रवचनों में केवल सत्य का उद्घाटन या सौन्दर्य की सृष्टि ही नहीं हुई है अपितु शिवत्व का अवतरण भी उनमें सहजतया हो गया है। उनके प्रवचनों सार्वभौम वैशिष्ट्य को कुछ बिन्दुओं में व्यक्त किया जा सकता है । व्यावहारिक प्रस्तुति उनके प्रवचन की सर्वभौमिकता का सबसे बड़ा कारण है कि वे गहरे विचारक होते हुए भी किसी विचार से बंधे हुए नहीं हैं । उनका आग्रहमुक्त / निर्द्वन्द्व मानस कहीं से भी अच्छाई और प्रेरणा ग्रहण कर लेता है । उनकी प्रत्युत्पन्न मेधा हर सामान्य प्रसंग को भी पैनी दृष्टि से पकड़ने में सक्षम है । घटना को श्रोता के समक्ष इस रूप में प्रस्तुत करते हैं कि वे उससे स्वतः उत्प्रेरित हो जाते हैं। सामान्य घटना के पीछे रहे गहरे दर्शन को वे बातों ही बातों में बहुत सहजता से चित्रित कर देते हैं । विशेष क्षणों में उपजा हुआ चिन्तन बड़े-बड़े विचारकों के लिए भी चिन्तन की एक खुराक दे जाता है। इस तथ्य का स्वयंभू साक्ष्य है— बंगला देश के शरणार्थियों के संदर्भ में की गयी आचार्य तुलसी की निम्न टिप्पणी" आप अपने को शरणार्थी मानते हैं पर मेरी दृष्टि में आधुनिक युग का सबसे बड़ा शरणार्थी सत्य है । वह निःसहाय है उसे कहीं सहारा नहीं मिल रहा है। जब तक सत्य शरणार्थी रहेगा, तब तक मनुष्य को सुख-शांति कैसे मिल सकती है ?" कर्मवाद का दार्शनिक तथ्य उनकी प्रतिभा के पारस से छूकर किस प्रकार सामान्य घटना के माध्यम से उद्गीर्ण हुआ है, यह द्रष्टव्य हैपंजाब यात्रा का प्रसंग है । एक ट्रक ढकेला जा रहा था । आचार्य तुलसी ने उसे देखकर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहा - " किसी भी व्यक्ति के दिन सदा समान नहीं होते । सबको सहयोग देकर चलाने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy