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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन ___ आचार्य तुलसी महान् यायावर हैं। वे कहते हैं- "यात्रा में मेरी अभिरुचि इतनी है कि एक स्थान पर रहकर भी मैं यात्रायित होता रहता हूं।" उन्होंने देश के लगभग सभी प्रांतों की यात्राएं की हैं पर स्वयं कोई स्वतंत्र यात्रा ग्रंथ नहीं लिखा है फिर भी उनके कुछ लेख जैसे 'मेरी यात्रा' 'मैं क्यों घूम रहा हूं' आदि यात्रावृत्त के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं। इसके साथ उनके प्रवचन साहित्य में यात्रा के संस्मरणों का उल्लेख भी स्थान-स्थान पर हुआ है । उन्होंने अपने काव्य ग्रन्थों में स्फुट रूप से यात्रा का वर्णन किया है पर उसे यात्रावृत्त नहीं कहा जा सकता। आचार्य तुलसी की यात्राओं का रोचक एवं मार्मिक चित्रण महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने किया है। अब तक उनकी यात्राओं के छह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं - (१) दक्षिण के अंचल में (दक्षिण यात्रा) (२) पांव पांव चलने वाला सूरज (पंजाब यात्रा) (३) बहता पानी निरमला (गुजरात यात्रा) (४) जब महक उठी मरुधर माटी (मारवाड़ यात्रा) (५) अमृत बरसा अरावली में (मेवाड़ यात्रा) (६) परस पांव मुसकाई घाटी (मेवाड़ यात्रा)। इन यात्रा ग्रन्थों में तथ्यपरकता, भौगोलिकता, रोचकता, सरसता तथा सहजता आदि यात्रावृत्त के सभी गुण समाविष्ट हैं। ये ग्रन्थ इतनी सरस शैली में यात्रा का इतिहास प्रस्तुत करते हैं कि पाठक को ऐसा लगता है मानो वह आचार्य तुलसी के साथ ही यात्रायित हो रहा हो। इन यात्रा ग्रन्थों को पढ़कर ही प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्रजी ने लेखिका साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी को कहा 'लिखना तो हमें आपसे सीखना पड़ेगा'। इस एक वाक्य से इन यात्रा ग्रंथों की गरिमा अभिव्यक्त हो जाती है। (विद्वानों ने प्रवचन साहित्य को साहित्यिक विधा के अंतर्गत नहीं माना है पर आचार्य तुलसी ने इस विधा में नए प्रयोग किए हैं तथा विपुल परिमाण में इस विधा में अभिव्यक्ति दी है। अतः स्वतंत्र रूप से . उनके प्रवचन साहित्य के वैशिष्ट्य को यहां उजागर किया जा रहा है।) प्रवचन साहित्य भारतीय परम्परा में आत्मद्रष्टा ऋषियों एवं धर्मगुरुओं के प्रवचनों का विशेष महत्त्व है क्योंकि शब्दों का अचिन्त्य प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। 'मा भै': उपनिषद् की इस वाणी ने अनेकों को निर्भय बना दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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