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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन साधक के मुख से निःसत होते हैं तब वे और अधिक शक्तिशाली बन जाते हैं । आचार्य तुलसी का प्रत्येक शब्द सार्थकता लिए हुए है, अतः प्रेरक है। धर्मनेता होने के कारण अनेकों अवसरों पर वे अपने संदेश प्रेषित करते रहते हैं। कभी पत्रिका में आशीर्वचन के रूप में तो कभी किसी कार्यक्रम के उद्घाटन में, कभी मृत्युशय्या पर लेटे किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास जगाने तो कभी किसी शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देने, कभी राष्ट्रीय एकता परिषद् को उदबोधित करने तो कभी-कभी सामाजिक संघर्ष का निपटारा करने । सैंकड़ों परिस्थितियों से जुड़े हजारों संदेश उनके मुखारविंद से निःसृत हुए हैं, जिनसे समाज को नई दिशा मिली है । उन सबको यदि प्रकाशित किया जाय तो कई खंड प्रकाशित हो सकते हैं । इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार' की घोषणा होने पर अपने एक विशेष संदेश में वे कहते हैं "मैं केवल आत्मनिष्ठा और अहिंसा की साधना की दृष्टि से काम कर रहा हूं। न कोई आकांक्षा और न कोई स्पर्द्धा । मेरे कार्य का कोई मूल्यांकन करता है या नहीं, इसकी भी कोई चिन्ता नहीं। मैंने विरोधों में कभी हीनभावना का अनुभव नहीं किया और प्रशस्तियों में कभी अहंकार को पुष्ट नहीं किया दोनों स्थितियों में सम रहने की साधना ही मेरी अहिंसा है ?" उनके संदेश व्यक्ति, संस्था, समाज या उत्सव से संबंधित होते हुए भी पूरी तरह से सार्वजनीन हैं, इसीलिए बाम व्यक्ति को उन्हें पढ़ने में कहीं अरुचि प्रतीत नहीं होती अपितु उसे अपनी समस्या का समाधान नितरता हुआ प्रतीत होता है। उनके संदेशों का वैशिष्ट्य यह है कि उनमें व्यक्ति, समाज या संस्था की विशेषताओं का अंकन है तो साथ ही साथ विसंगतियों का उल्लेख कर उन्हें मिटाने का उपाय भी निर्दिष्ट है । इन संदेशों में प्रेरणा सूत्र, आलंबन सूत्र तथा अध्यात्म-विकास के सूत्र उपलब्ध होते हैं, जिन्हें सुन-पढ़कर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन में अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर समाज और संस्थानों को भी लाभ पहुंचा सकता है। गद्यकाव्य हिन्दी में भावात्मक निबन्ध गद्यकाव्य कहलाते हैं । डा० भगवतीप्रसाद मिश्र का मंतव्य है कि किसी कथानक, चरित्र या विचार की कल्पना और अनुभूति के माध्यम से गद्य में सरस, रोचक और स्मरणीय अभिव्यक्ति गद्यकाव्य है । यह सामान्य गद्य की अपेक्षा अधिक अलंकृत, प्रवाहपूर्ण, तरल एवं माधुर्यमंडित रचना होती है । इस विधा में दर्शन की गहराई को जिस चातुर्य के साथ प्रस्तुत किया जाता है, वह पठनीय होता है। 'अतीत का विसर्जनः १. २५ अक्टूबर, १९९३, राजलदेसर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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