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आ• तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
कि पढ़ने वाला उन भावों में उन्मज्जन निमज्जन किए बिना नहीं रह सकता ।
डायरी
इस विधा में लेखक अपने अनुभवों को लिखता है । अत: यह नितान्त वैयक्तिक सम्पत्ति होती है किन्तु प्रकाश में आने के बाद यह सार्वजनिक हो जाती है । यथार्थता और स्वाभाविकता ये दो गुण इसके आधार होते हैं । हर्ष, विषाद, उल्लास, निराशा आदि भावनाओं को उत्पन्न करने वाली घटनाएं प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में रोज ही घटित होती हैं, किन्तु सामान्य व्यक्ति उन्हें भूल जाता है जबकि साहित्यकार या साधक व्यक्ति के संवेदनशील हृदय में उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया या मानसिक स्थिति को व्यक्त करने की आतुरता जाग जाती है, उद्वेलन के इन्हीं क्षणों में डायरी लिखी जाती है ।
आचार्य तुलसी प्रायः प्रतिदिन डायरी लिखते हैं पर अभी तक डायरी के पन्ने प्रकाशित नहीं हुए हैं। उनकी अप्रकाशित डायरी की निम्न पंक्तियां उनके समत्व साधक का रूप प्रस्तुत करती हैं- "आज के युग के मकान साधुसंतों के अनुकूल कम पड़ते हैं । सब कुछ कृत्रिम हो गया है । अतएव प्रकृति में चलने वालों के लिए कठिनाइयां आती हैं फिर भी हम जैसे-तैसे सामंजस्य बिठा लेते हैं। संतुलन नहीं खोते हैं, यह अच्छी बात है ।'
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'खोये सो पाए' पुस्तक के कुछ लेखों में डायरी विधा के दर्शन होते हैं क्योंकि उसमें हिसार में २१ दिन के एकान्तवास में चैतन्य की अनुभूति के क्षणों में प्रतिदिन के विचारों को लिपिबद्ध किया गया है । इन विचारों को पढ़कर लगता है कि वे साहित्यकार के समनन्तर साधक हैं। आचार्य तुलसी की डायरी कितनी स्पष्ट, सरल व सहज है, यह इन लेखों को पढ़ने से अनुभव हो सकता है। इसी पुस्तक का एक अंश उनके साधनात्मक अनुभव की अभिव्यक्ति देता हुआ सामान्य जन को भी प्रेरणा देता है- "हमारा वर्तमान का अनुभव बताता है कि इन्द्रियों और मन की मांग को समाप्त किया जा सकता है । अपने जीवन में पहली बार एक प्रयोग कर रहा हूं । इस समय इन्द्रियां निश्चित हैं और मन शांत है । खान, पान, जागरण, देखना, बोलना, किसी भी प्रवृत्ति के लिए मन पर बाध्यता नहीं है ।"
संदेश
शब्दों में प्रवाहित भाव और विचार कमजोरों को ताकत देने, दुष्टों को दुष्टता से मुक्त करने, मूर्खों को प्रतिबोध देने और मानव में मानवता का संचार करने का सामर्थ्य रखते हैं, इसलिए शब्द ही टिकता है, न सिंहासन, न कुर्सी, न मुकुट, न बैंक - बैलेस और न धनमाल । शब्द जब किसी आत्मबली १. अप्रकाशित डायरी, २६ जून १९९०, पाली
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