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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन है। उनकी दृष्टि में यदि लेखक में सत्यजन्य पीड़ा नहीं है तो वह सत्साहित्य की रचना नहीं कर सकता। आचार्य तुलसी ने भी साहित्य की गुरुता का अंकन करते हुये अपने साहित्य में सत्य और सौन्दर्य का सामंजस्य स्थापित किया है। उनकी यह प्रेरणा एवं साहित्यिक आदर्श साहित्यकारों की चेतना को झंकृत कर उन्हें युगनिर्माण की दिशा में प्रेरित करते रहेंगे। साहित्य का वैशिष्ट्य
राष्ट्र, समाज तथा मनुष्य को प्रभावित करने वाले किसी भी दर्शन और विज्ञान की प्रस्तुति का आधार तत्त्व है- साहित्य । सत्साहित्य में तोप, टैक और एटम से भी कई गुना अधिक ताकत होती है । अणुअस्त्र की शक्ति का उपयोग निर्माणात्मक एवं ध्वंसात्मक दोनों रूपों में हो सकता है, पर अनुभवी साहित्यकार की रचना मानव-मूल्यों में आस्था पैदा करके स्वस्थ समाज की संरचना करती है । साहित्य द्वारा समाज में जो परिवर्तन होता है। वह सत्ता या कानून से होने वाले परिवर्तन से अधिक स्थायी होता है। अतः दुनिया को बदलने में सत्साहित्य की निर्णायक भूमिका रही है। हजारीप्रसाद द्विवेदी तो यहां तक कह देते हैं कि साहित्य वह जादू की छड़ी है, जो पशुओं में, ईंट-पत्थरों में और पेड़-पौधों में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।"
सत्साहित्य की महत्ता को लोकमान्य गंगाधर तिलक की इस मात्मानुभूति में पढ़ा जा सकता है-“यदि कोई मुझे सम्राट बनने के लिए कहे और साथ ही यह शर्त रखे कि तुम पुस्तकें नहीं पढ़ सकोगे तो मैं राज्य को तिलाञ्जलि दे दूंगा और गरीब रहकर भी साहित्य पढूंगा।" यह पुस्तकीय सत्य नहीं, किन्तु अनुभूति का सत्य है । अतः साहित्य के महत्त्व को वही मांक सकता है, जो उसका पारायण करता है। फिर वह साहित्य पढ़े बिना वैसी ही दुर्बलता एवं मानसिक कमजोरी की अनुभूति करता है, जैसे बिना भोजन किए हमारा शरीर ।
साहित्य ही वह माध्यम है, जो हमारी संस्कृति की सुरक्षा कर उसे पीढ़ी दर पीढ़ी संक्रांत करता है । महावीर, बुद्ध, व्यास और वाल्मीकि ने साहित्य के माध्यम से जिन आदर्शों की सृष्टि की, वे आज भी भारतीय संस्कृति के गौरव को अभिव्यक्त करने में पर्याप्त हैं। जहां साहित्य नहीं, वहां जीवन सरस एवं रम्य नहीं हो सकता। जीवन में जो भी आनन्दबोध, सौंदर्यबोध और सुखबोध है, उसकी अनुभूति साहित्य द्वारा ही संभव है। साहित्य द्वारा प्राप्त आनंद की अनुभूति द्विवेदीजी के साहित्यिक शब्दों में पढ़ी जा सकती है-"साहित्य वस्तुतः एक ऐसा आनंद है जो अंतर में अंटाए नहीं अंट सकता । परिपक्व दाडिम फल की भांति वह अपने रंग और रस को
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