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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
गया है। वे अपनी साहित्य सृजन की अनुभूति को इस भाषा में प्रकट करते हैं"साहित्य सृजन की प्रेरणा देने में मुझे जितना आत्मतोष होता है, उतना ही आत्मतोष नया सृजन करते समय होता है ।" अपने शिष्य समुदाय को साहित्य के क्षेत्र में नयी परम्परा स्थापित करने की प्रेरणा-मंदाकिनी उनके मुखारविंद से समय-समय पर प्रवाहित होती रहती है-"आज समाज की चेतना को झकझोरने वाला साहित्य नहीं के बराबर है। इस अभाव को भरा हुआ देखने के लिए अथवा साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में जो शुचितापूर्ण परम्पराएं चली आ रही हैं, उनमें उन्मेषों के नए स्वस्तिक उकेरे हुए देखने के लिए मैं बेचैन हूं। मेरे धर्मसंघ के सुधी साधु-साध्वियां इस दृष्टि से सचेतन प्रयास करें और कुछ नई संभावनाओं को जन्म दें, यह अपेक्षा है।"
इसी संदर्भ में उनकी दूसरी प्रेरणा भी मननीय है - "साहित्य वही तो है जो यथार्थ को अभिव्यक्ति दे। वह कृत्रिम बनकर अभिव्यक्त हो तो उसमें मौलिकता सुरक्षित नहीं रहती । मैं अपने शिष्यों से यह अपेक्षा रखता हूं कि वे इस गुरुतर दायित्व को जिम्मेवारी से निभायेंगे।"
आचार्य तुलसी एक बृहद् धार्मिक समुदाय के आध्यात्मिक नेता हैं । उनके वटवृक्षीय व्यक्तित्व के निर्देशन में अनेकों प्रवृत्तियां चालू हैं अतः वे साहित्य सृजन में अधिक समय नहीं निकाल पाते किन्तु उनके मुख से जो भी वाक्य निःसृत होता है, वह अमूल्य पाथेय बन जाता है। आचार्य तुलसी के साहित्यिक व्यक्तित्व का आकलन उनके साहित्य की कुशल संपादिका महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी इन शब्दों में करती हैं.-"उनका कवित्व हर क्षण जागृत रहता है, फिर भी वे काव्य का सजन कभी-कभी करते हैं। उनका लेखन हर क्षण जागरूक रहता है, किन्तु कलम की नोक से कागज पर अंकन यदा कदा ही हो पाता है। इसका कारण कि वे कवि और लेखक होने के साथ-साथ प्रशासक भी हैं, आचार्य भी हैं।" फिर भी उन्होंने सरस्वती के अक्षय भंडार को शताधिक ग्रंथों से सुशोभित किया है।
प्रसिद्ध साहित्यकार सोल्जे नोत्सिन साहित्यकार के दायित्व का उल्लेख करते हुए कहते हैं-मानव-मन, आत्मा की आंतरिक आवाज, जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष, आध्यात्मिक पहलुओं की व्याख्या, नश्वर संसार में मानवता का बोलबाला जैसे अनादि सार्वभौम प्रश्नों से जुड़ा है साहित्यकार का दायित्व । यह दायित्व अनन्त काल से है और जब तक सूर्य का प्रकाश और मानव का अस्तित्व रहेगा, साहित्यकार का दायित्व भी इन प्रश्नों से जुड़ा रहेगा।'
___ आचार्य तुलसी के साहित्यिक दायित्व का मूल्यांकन भी इन कसौटियों पर किया जाए तो उपर्युक्त सभी प्रश्नों के उत्तर हमें प्राप्त हो जाते
१. जैन भारती, १७ सित० १९६१
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