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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण "यदि व्यक्ति स्वतंत्र है तो किसी क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं करेगा। वह एक क्षण में प्रसन्न और एक क्षण में नाराज नहीं होगा, एक क्षण में विरक्त और एक क्षण में वासना का दास नहीं बनेगा।
__ पदार्थवादी दृष्टिकोण ने व्यक्ति को इतना भौतिक और यांत्रिक बना दिया है कि उसके सामने जीवन का मूल्य नगण्य हो गया है। वे वैज्ञानिक प्रगति के विरोधी नहीं पर विज्ञान व्यक्ति पर हावी हो जाए, इसके घोर विरोधी हैं तथा इसमें भयंकर दुष्परिणाम देखते हैं। विज्ञान पर व्यंग्य करता हुआ उनका निम्न वक्तव्य अनेक लोगों की मौलिक सोच को जागृत करने वाला है-“१० अगस्त १९८२ का धर्मयुग देखा। उसके तीसरे पृष्ठ पर एक विज्ञापन छपा है नोविनो सेल का । विज्ञापन के ऊपर के भाग में एक आदमी का रेखाचित्र है और उसके निकट ही रखा हुआ है एक कैल्क्युलेटर। कैल्क्युलेटर सेल से काम करता है। उस रेखाचित्र के नीचे दो वाक्य लिखे हुए हैंकैलक्युलेटर लगातार काम करेगा इसका आश्वासन तो हम दे सकते हैं पर ये महाशय भी ऐसे ही काम करेंगे, इसका आश्वासन भला हम कैसे दे सकते हैं ? एक आदमी का आदमी के प्रति कितना तीखा व्यंग्य है ? कहां विद्युतघट के रूप में काम करने वाला सेल और कहां ऊर्जा का अखूट केंद्र आदमी ? सेल का निर्माता आदमी है वही आदमी अपने सजातीय का ऐसा क्रूर उपहास करे, कितनी बड़ी विडम्बना है ! १२ युगधारा को पहचानने के कारण इस प्रकार के अनेक मौलिक चिन्तन उनके साहित्य में यत्र-तत्र मिल जाएंगे। यह वेधकता और मौलिकता उनके साहित्य की अपनी निजता है। यथार्थ
हिंदी साहित्य में आदर्श और यथार्थ के संघर्ष की एक लम्बी परम्परा रही है। इसी आधार पर साहित्य के दो वाद प्रतिष्ठित हैं- आदर्शवाद और यथार्थवाद । यथार्थवादी जीवन की साधारणता का चित्रण करता है जबकि आदर्शवादी जीवन के असाधारण व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति देता है। आदर्श केवल गुणों का चित्रण उपस्थित करता है जबकि यथार्थ गुण और अवगुण दोनों को अपने अंचल में समेट लेता है। आदर्श कहीं-कहीं अवगुण को भी गुण में परिवर्तित कर देता है । आचार्य तुलसी में आदर्शवाद और यथार्थवाद की समन्वित छाया परिलक्षित होती है इसलिए उनके साहित्य को आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का प्रतीक कहा जा सकता है। वे इस तथ्य को मानकर चलते हैं कि यथार्थ को उपेक्षित करने वाला आदर्श केवल उपदेश या कल्पना हो सकती है, ठोस के धरातल पर उतरने की क्षमता उसमें नहीं होती। १. जैन भारती, २६ जून, ५५ २. कुहासे में उगता सूरज, पृ० ३७
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