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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन अपितु उन जीवित व्यक्तियों से ली है जो प्रतिदिन हजारों की संख्या में उनके चरणों में उपस्थित होते हैं। यही कारण है कि उनके साहित्य में जीवंत सत्य का दर्शन होता है । यह सत्य कभी-कभी उनकी स्वयं की अनुभूति में भी प्रकट हो जाता है० मैंने अपने छोटे से जीवन में गुस्सैल व्यक्ति बहुत देखे हैं पर उत्कृष्ट कोटि के क्षमाशील कम देखे हैं। गर्वित व्यक्तियों से मेरा आमनासामना बहुत हुआ है पर विनम्र व्यक्ति कम देखे हैं। लोगों को फंसाने के लिए व्यूह रचना करने वाले मायावी व्यक्ति बहुत मिले पर ऋजुता की विशेष साधना करने वाले कितने होते हैं ? लोभ के शिखर पर आरोहण करने वाले अनेक व्यक्तियों से मिला हूं पर संतोष की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए व्यक्ति कम देखे हैं। इसी प्रकार पढ़े-लिखे लोगों से मेरा सम्पर्क आए दिन होता है पर बहुश्रुत व्यक्तियों से साक्षात्कार करने का प्रसंग कभी-कभी ही मिल पाता है।' ० स्याद्वाद से मैं यह सीख पाया हूं कि सत्य उसी व्यक्ति को प्राप्त ___ होता है जिसके मन में अपनी मान्यताओं का आग्रह नहीं होता। ० मैं आचार की समता लेकर चलता हूं अतः दो विरोधी विचार भी मेरे सामने एक घाट पानी पी सकते हैं। ० अति हर्ष और विषाद, अति श्रम और विश्राम आदि अतियों से बचे रहने के कारण मैं आज भी अपने आपको तारुण्य की दहलीज पर खड़ा अनुभव कर रहा हूं। ० विरोधों से डरने वालों को मैं उचित परामर्श देना चाहता हूं कि वे एक तटस्थद्रष्टा की भांति उसे देखते रहें और आगे बढ़ते रहें, भविष्य उन्हें स्वतः बतला देगा कि बढ़े हुए ये कदम प्रगति को किस प्रकार अपने में समेटे हुए चलेंगे। जीवन के ये अनुभूत सत्य हर किसी को प्रेरणा देने में पर्याप्त हैं। स्वतंत्रता साहित्य के परिवेश में स्वतंत्रता का अर्थ है-मौलिकता। आचार्य तुलसी के साहित्य की मौलिकता इस बात से नापी जा सकती है कि उन्होंने समाज के उन अनछुए पहलुओं का स्पर्श किया है जिसकी ओर आम साहित्यकार का ध्यान ही नहीं जाता। उन्होंने अनेक शब्दों को नया अर्थ भी प्रदान किया है । स्वतंत्रता का अर्थ प्राय: विदेशी सत्ता से मुक्ति या नियम की पराधीनताओं से मुक्ति माना जाता है पर उन्होंने उसे एक मौलिक अर्थवत्ता प्रदान की है१. एक बूंद : एक सागर, पृ० १६९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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