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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन आदर्श के बारे में उनकी अवधारणा यथार्थ के निकट है पर संतुलित है - "आदर्श वह नहीं होता, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति चल ही नहीं सके और आदर्श वह भी नहीं होता जिसके अनुसार हर कोई आसानी से चल सके। आदर्श वह होता है जो व्यक्ति को साधारण स्तर से ऊपर उठाकर ऊंचाई के उस बिंदु तक पहुंचा दे जहां संकल्प की उच्चता और पुरुषार्थ की प्रबलता से पहुंचा जा सकता है । आदर्श और यथार्थ की अन्विति होने से उनका साहित्य अधिक जनभोग्य, प्रेरक तथा आकर्षक हो गया है । जीवन के हर क्षेत्र में यहां तक कि प्रशासनिक अनुभवों में भी यथार्थ और आदर्श के समन्वय की पुट देखी जा सकती है। उनका कहना है - "अनुशासन एक कला है । इसका शिल्पी यह जानता है कि कब कहा जाए और कहां सहा जाए । सर्वत्र कहा होजाए तो धागा टूट जाता है और सर्वत्र सहा ही जाए तो वह हाथ से छूट जाता है ।" क्रांति नेपोलियन बोनापार्ट कहते थे - क्रांति अति हानिकारक कूड़े के ढेर के सदृश है, जिसमें अति उत्तम वानस्पतिक पैदावार होती है। आचार्य तुलसी क्रांति को उच्छृंखलता, उद्दंडता और अशांति नहीं मानते। उनकी दृष्टि में इन तत्त्वों से जुड़ी क्राति, क्रांति नहीं, भ्रांति है । वे क्रांति का अर्थ करते हैं" सामाजिक धारणाओं, व्यवस्थाओं और व्यवहारों का पुनर्जन्म । इसका सूत्रपात वही कर सकता है जो स्वयं विषपान कर दूसरों को अमृत पिलाता है ।" उनके साहित्य का हर पृष्ठ बोलता है कि उनकी विचारधारा एक अहिंसक क्रांतिकारी की विचारधारा है । वे स्वयं अपनी अनुभूति को लिखते हुए कहते हैं- "यदि मैंने समय के साथ चलने की समाज को सूझ नहीं दी तो मैं अपने कर्त्तव्य मे च्युत हो जाऊंगा । इसलिए समाज की आलोचना का पात्र बनकर भी मैंने समय-समय पर प्रदर्शनमूलक प्रवृत्तियों, धार्मिक अंधपरंपराओं और अंधानुकरण की वृत्ति पर प्रहार करके समाज में क्रांति घटित करने का प्रयत्न किया है।' 103 उनके साहित्य में मुख्यतः सामाजिक एवं धार्मिक क्रांति के बिंदु मिल हैं । सामाजिक क्रांति के रूप में उन्होंने समाज की आडम्बरप्रधान विकृत प्रवृत्तियों को बदलने के लिए रचनात्मक उपाय निर्दिष्ट किए हैं । दहेज प्रथा के विरोध में युवापीढ़ी में अभिनव जोश भरते हुए तथा उसके प्रतिकार का मार्ग सुझाते हुए उनकी क्रांतवाणी पठनीय ही नहीं, मननीय भी है - अपनी पीढ़ी की तेजस्विता और यशस्विता के पहरुए बनकर एक साथ सैकड़ों-हजारों युवक-युवतियां जिस दिन बुलंदी के साथ दहेज के विरुद्ध १. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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