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________________ २५४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण आचार्यश्री तुलसी (जीवन पर एक दृष्टि ) आचार्यश्री के जीवन पर लिखा गया संभवतः यह प्रथम जीवनी ग्रंथ है । इसके लेखक मुनिश्री नथमलजी ( वर्तमान युवाचार्य महाप्रज्ञ ) हैं । आज से ४२ वर्ष पूर्व (१९५२) लिखी गयी यह पुस्तक मुख्यतः तीन भागों में विभक्त है बालजीवन, मुनिजीवन एवं आचार्य जीवन । प्रथम दो खंड संस्मरण प्रधान अधिक हैं किन्तु तीसरे 'आचार्य' खंड में उनके विराट् व्यक्तित्व का आकलन प्रस्तुत है । इसमें केवल प्रशस्ति नहीं, अपितु उनके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं की विचारात्मक अभिव्यक्ति है । कहा जा सकता है कि लेखक ने केवल श्रद्धा के बल पर नहीं, अपितु उनके व्यक्तित्व को विचारात्मक प्रस्तुति दी है । प्रस्तुत जीवनी ग्रन्थ में आचार्य तुलसी के जीवन से सम्बन्धित अनेक संस्मरणों का समावेश कर देने से अत्यन्त रोचक हो गया है। इसकी भूमिका में प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्रजी आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व को निम्न शब्दों में प्रस्तुति देते हैं- " तुलसीजी को देखकर लगा कि यहां कुछ है, जीवन मूच्छित और परास्त नहीं है । व्यक्तित्व में सजीवता है और एक विशेष प्रकार की एकाग्रता । वातावरण के प्रति उनमें ग्रहणशीलता है और दूसरे व्यक्तियों एवं समुदायों के प्रति संवेदनशीलता ।" आचार्यश्री तुलसी : जीवन और दर्शन यह मुनि नथमलजी ( वर्तमान युवाचार्य महाप्रज्ञ ) का आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व को प्रस्तुति देने वाला दूसरा जीवनी ग्रन्थ है। लगभग ३१ वर्ष पूर्व लिखा गया यह जीवनी ग्रन्थ १० अध्यायों में विभक्त है । Jain Education International इस ग्रंथ में श्रद्धा एवं तर्क का समन्वय देखा जा सकता है । लेखक स्वयं प्रस्तुति में अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहते हैं- " मैं आचार्यश्री को केवल श्रद्धा की दृष्टि से देखता तो उनकी जीवन-गाथा के पृष्ठ दस से अधिक नहीं होते । उनमें मेरी भावना का व्यायाम पूर्ण हो जाता । आचार्य श्री को मैं केवल तर्क की दृष्टि से देखता तो उनकी जीवन-गाथा सुदीर्घ हो जाती, पर उसमें चैतन्य नहीं होता ।" इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आचार्यश्री के व्यक्तिगत डायरियों से अनेक स्थल उद्धृत हैं stefरयों के उद्धरणों से अनेक नई जानकारियां प्राप्त होती हैं । धर्मचक्र का प्रवर्त्तन यह युवाचार्य महाप्रज्ञ द्वारा लिखित तीसरा जीवनी ग्रन्थ है । यद्यपि इसमें 'आचार्य श्री तुलसी : जीवन और दर्शन' के काफी अंशों का समाहार कर लिया गया है, फिर भी ३१ वर्षों के बीच आचार्यश्री ने अपनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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