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________________ २५२ आ• तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण इस प्रकार इसमें विविधमुखी सूक्तियों का संकलन है। इस कृति का महत्त्व इसलिए अधिक बढ़ जाता है कि यह आचार्यप्रवर के हाथ से लिखे गए सूक्तों का संकलन है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चयनित सूक्त उसमें नहीं हैं। शैक्षशिक्षा आचार्य तुलसी एक जागरूक अनुशास्ता हैं। अपने अनुयायियों को विविध प्रेरणाएं देने के लिए वे नई-नई विधाओं में साहित्य-सर्जना करते रहते हैं। उन्होंने लगभग १००० व्यक्तियों को अपने हाथों से संन्यास के मार्ग पर प्रस्थित किया है । अतः नवदीक्षित साधु-साध्वियों को संयम, अनुशासन, सहिष्णुता आदि जीवन-मूल्यों की प्रेरणा देने हेतु उनकी एक महत्त्वपूर्ण संकलित कृति है-- 'शैक्षशिक्षा'। सोलह अध्यायों में विभक्त इस कृति में आगम तथा आगमेतर अनेक ग्रंथों के पद्यों का सानुवाद उद्धरण है तथा आचार्य भिक्षु, जयाचार्य द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण गेय गीतों का समावेश भी है। इस ग्रंथ में अनेक विषयों से सम्बन्धित जानकारी भी एक ही स्थान पर मिल जाती है। जैसे स्वाध्याय से सम्बन्धित प्रकरण में स्वाध्याय, उसके भेद, स्वाध्याय का महत्त्व आदि । अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समाहार होने से यह संकलित कृति प्रवचनकारों के लिए भी महत्त्वपूर्ण वन गयी है । यह अप्रकाशित कृति जीवन को सुन्दर बनाने एवं मानवीय मूल्यों को लोकचित्त में संचरित करने में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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