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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
२. जुआ एक अग्नि है, उसकी ज्वाला व्यक्ति को सांय-सांय कर जला
देती है। ३. मांस-भक्षण आत्मदुर्बलता का सूचक है। ४. शराब एक व्यसन है, जिससे मनुष्य अपने ज्ञान और चेतना सब कुछ खो देता है।
सीपी सूक्त साहित्य जीवन के अनुभवों की सरस अभिव्यक्ति है। आचार्य तुलसी के साहित्य में अनेक ऐसे वाक्य हैं, जिन्हें प्रेरक, मर्मस्पर्शी और जीवन्त कहा जा सकता है। उनके साहित्य से सूक्ति-संकलन का कार्य अनेक रूपों में प्रकाशित हुआ है। उन्हीं में एक प्राचीन संकलन है ... सीपी सूक्त ।
ये सूक्तियां किसी एक विषय से सम्बन्धित नहीं, पर समय-समय पर सन्त-मन में उठने वाले विचारों की अभिव्यक्तियां है । इन वाक्यों में मानवता का दिव्य संदेश है। ये विचार पाठक की संवेदनाओं को तो जागृत करते ही हैं साथ ही जनता को उद्बोधित करने का व्यंग्य भी इनमें समाहित
हस्ताक्षर _ 'हस्ताक्षर' आचार्य तुलसी के विचारों का नवनीत है । इसमें प्रतिदिन लिखे गए प्रेरक वाक्यों का संकलन है। ये विचार दिनांक एवं स्थान के साथ प्रस्तुत हैं, इसलिए इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्त्व भी बढ़ जाता है। इसमें मुख्यतः सन् ७०,७१,८३,८४ एवं ८५ में लिखे गए अनुभूत वाक्यों का समाहार है। अनेक वाक्य महावीर एवं आचार्य भिक्षु की वाणी के अनुवाद
खणं जाणाहि क्षण को पहचानो (बालोतरा ९ अग. १९८३) तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ? महान् समुद्र को तर गया तो फिर तीर पर आकर क्यों रुका ?
(रायपुर, १० सित० १९७०) कहीं कहीं संस्कृत के सुभाषितों को भी प्रतिदिन के विचार में लिख दिया गया है। जैसे
अग्निदाहे न मे दुःखं, न दुःखं लोहताड़ने । इदमेव महदुःखं, गुजया सह तोलनम् ॥
(पर्वतसर १८ जन० १९७१) अवर वस्तु में भेल हुवे, दया में हिंसा रो नहिं भेलो। पूरब ने पश्चिम रो मारग, किणविध खावं मेलो रे ॥
(भादलिया, २१ जन० १९७१)
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