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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण में पंडित दलसुखभाई मालवणिया, चौथे खंड में विश्वम्भरनाथ पांडे तथा पांचवें खंड में डा० नागेन्द्र तथा डा० निजामुद्दीन की समालोचना संलग्न ये पांचों खंड सभी वर्गों के व्यक्तियों को जीवन की खुराक दे सकेंगे, ऐसा विश्वास है। । तुलसी-वाणी __ आचार्य तुलसी के प्रवचनों से मुनिश्री दुलीचंदजी ने एक संकलन तैयार किया, जिसका नाम है-'तुलसी वाणी'। इस पुस्तक में लगभग ६८ शीर्षकों पर विचार संकलित हैं। संकलयिता ने न इसे सूक्ति का आकार दिया है और न पूरे प्रवचन का, पर विचारों की दृष्टि से यह पुस्तक छोटी होते हुए भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । इन प्रवचनांशों में विशुद्ध अध्यात्म की पुट है तो साथ ही सामयिक समस्याओं का समाधान भी है। पथ और पाथेय पथ पर चलने वाले हर पथिक को पाथेय की अपेक्षा रहती है । छोटी सी यात्रा में भी पथिक अपने पाथेय के साथ चलता है फिर संसार के अनंत पथ को पार करने के लिए तो पाथेय की अनिवार्यता स्वतः सिद्ध हो जाती है। 'पथ और पाथेय' पुस्तक मुनिश्री श्रीचंदजी द्वारा संकलित की गयी है। इसमें लगभग २३ विषयों पर आचार्य तुलसी की सूक्तियों एवं प्रेरक वाक्यों का संकलन है । पॉकेट बुक के रूप में इस पुस्तक को पाठक हर वक्त अपना साथी बनाकर प्रेरणा प्राप्त कर सकता है। आचार्य तुलसी की आध्यात्मिक गगरी से छलकने वाली ये बूंदें पाठक के लिए पाथेय का कार्य करती रहेंगी। सप्त व्यसन व्यसन जीवन के लिए अभिशाप है। एक व्यसन भी जीवन के सारे सुखों को लील जाता है फिर सात व्यसनों से ग्रस्त मनुष्य का तो कहना ही क्या ? आचार्य तुलसी पिछले ६० सालों से व्यसनमुक्ति का अभियान छेड़े हए हैं और उसमें कामयाबी भी हासिल की है। 'सप्त व्यसन' नामक लघु पुस्तिका में सात व्यसनों के ऊपर प्रेरक सूक्तियों का संकलन है। यह. निबन्ध के रूप में स्वतंत्र रचना नहीं, अपितु संकलनात्मक है। अत्यन्त प्राचीन संग्रह होने पर भी इसके वाक्य भाषा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध एवं प्रेरक हैं । उदाहरण के लिए निम्न सूक्तों को प्रस्तुत किया जा सकता है १. व्यसन आत्मा का अभिशाप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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