________________
२४६
आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
समाधान की ओर जिज्ञासा व्यक्ति को सत्य की यात्रा करवाती है और समाधान लक्ष्य-प्राप्ति का साधन है। 'समाधान की ओर' पुस्तक में युवकों की जिज्ञासाएं एवं आचार्यश्री तुलसी के सटीक समाधान गुम्फित हैं । यह पुस्तक युवापीढ़ी से जुड़ी समस्त समस्याओं के समाधान का अभिनव उपक्रम है । प्रश्नोत्तरों में धर्म की वैज्ञानिक परिभाषा एवं आज के सन्दर्भ में उसकी उपयोगिता पर भी खुलकर चर्चा की गई है । समाधायक आचार्य तुलसी ने उत्तर में सर्वत्र अनेकांत शैली का प्रयोग किया है अतः समाधान में कहीं भी ऐकांतिकता का दोष नहीं दिखाई पड़ता।
आचार्य तुलसी का मंतव्य है कि समस्याएं मनुष्य की सहजात हैं । अतः समस्याएं रहेंगी, पर उनका रूप बदलता रहेगा। कोई भी समस्या ऐसी नहीं है, जिसका समाधान प्रस्तुत न किया जा सके । 'समाधान की ओर' पुस्तक इसी बात की पुष्टि करती हुई केवल व्यक्तिगत ही नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति के सामने खड़ी समस्याओं का समाधान करती है। इसमें जीवन के व्यावहारिक पथ को समाधान की वर्णमाला में पिरोने का प्रशस्य प्रयत्न किया है अतः बहुविध समस्या एवं समाधानों को अपने भीतर समेटे हुए यह पुस्तक विशिष्ट कृति के रूप में समाज को प्रकाश दे सकेगी।
साधु जीवन की उपयोगिता देश के नैतिक और चारित्रिक उत्थान में साधु-संस्था का विशेष योगदान रहता है। वह देश सम्पन्न होते हुए भी विपन्न है, जहां साधु-संस्था के प्रति जन-मानस में सम्मान का भाव नहीं होता। पुस्तक में साधु-संस्था का सामाजिक और राष्ट्रीय महत्त्व प्रतिपादित है, साथ ही वैयक्तिक स्तर पर जीवन-निर्माण की बात भी साधु-संस्था द्वारा ही संभव है, यह तथ्य भी स्पष्ट हुआ है।
इस कृति में आचार्य तुलसी ने साधु-संस्था को भार समझने वाले लोगों के समक्ष यह स्पष्ट किया है कि देश के विकास में केवल कृषि उत्पादन ही महत्त्वपूर्ण नहीं, चरित्रबल का उत्थान अधिक आवश्यक है । साधु देश के चरित्रबल को ऊंचा उठाते हैं। अतः देश में उनकी सर्वाधिक आवश्यकता है। एक सच्चा साधु मौन रहकर भी अपने आभामण्डल के शुद्ध परमाणुओं से जगत् के विकृत वातावरण को शुद्ध बना सकता है अतः साधु-संस्था की उपयोगिता के सामने कभी प्रश्नचिह्न नहीं लग सकता। . .
सूरज ढल ना जाए आचार्य तुलसी ने राजनेता की भांति केवल बाह्य परिस्थितियों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org