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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २४५ समण दीक्षा की पृष्ठभूमि, उसका इतिहास तथा आचार-संहिता का वर्णन है । इसके परिशिष्ट में मुमुक्षु श्रेणी की आचार संहिता भी संलग्न है | लघुकाय होते हुए भी यह पुस्तिका समण दीक्षा के प्रारम्भिक इतिहास की जानकारी देने में पर्याप्त है । इस पुस्तक में समण दीक्षा का स्वरूप साहित्यिक शैली में प्रस्तुत किया गया है । इसके कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं • समण दीक्षा है, अपने आप की पहचान का एक अमोघ संकल्प | • समण दीक्षा है, मन को निर्ग्रन्थ बनाने का एक छोटा-सा उपक्रम । • समण दीक्षा है, जीवन का वह विराम, जहां से एक नए छंद का प्रारम्भ होता है । • समण दीक्षा है, अध्यात्मविद्या को सीखने और मुक्तभाव से बांटने का एक नया अभिक्रम । • समण दीक्षा है, समय के भाल पर उदीयमान नये निर्माण का एक संकेत | अनेक ऐतिहासिक चित्रों से युक्त यह कृति आचार्य तुलसी की नयी सोच एवं क्रियान्विति की साक्षी बनी रहेगी । समता की आंख : चरित्र की पांख 'उद्बोधन' का तृतीय संस्करण 'समता की आंख : चरित्र की पांख' के रूप में प्रकाशित है। नए संस्करण में कुछ लेखों को और जोड़ दिया गया है । इस पुस्तक में अति संक्षिप्त शैली में छोटी-छोटी घटनाओं, संस्मरणों, रूपकों या कथाओं के माध्यम से अणुव्रत के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया गया है तथा नैतिक सन्दर्भों का समाज के साथ कैसे सामंजस्य बिठाया जा सकता है, इसका सरस और व्यावहारिक विवेचन है । पुस्तक में प्रयुक्त प्रायः कथाएं और घटनाएं ऐतिहासिक, सामाजिक एवं लोक-जीवन से जुड़ी हुई हैं। अनेक कथाओं में जीवन की किसी समस्या एवं उसके समाधान का निरूपण है । इन कथाओं का उपयोग केवल मनोरंजन हेतु नहीं, अपितु सरलता से तत्त्वबोध कराने के लिए हुआ है । ये जीवन्त कथाएं व्यक्ति को नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य करती हैं । पुस्तक को पढ़कर ऐसा लगता है कि आचार्यश्री ने मौखर्य या विस्तार की अपेक्षा मौन को अधिक महत्व दिया है । इसे अभिव्यक्ति का संयम कहा जा सकता है । इसमें कम शब्दों में बहुत कुछ कहने का अद्भुत कौशल प्रकट हुआ है । सम्पूर्ण कृति विविध शीर्षकों में गुम्फित होते हुए भी अणुव्रत - दर्शन से प्रभावित है तथा उसे ही व्याख्यायित करती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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