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________________ २४४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण अनेक विषयों पर चिन्तन-मनन प्रस्तुत किया गया है। प्रवचनों का संकलन होने के कारण पुस्तक की शैली औपदेशिक अधिक है तथा आकार में भी कई प्रवचन अत्यन्त लघ और कई अत्यन्त विस्तृत हैं। अधिकांश प्रवचनों में स्थान एवं दिनांक का निर्देश है, इस कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस कृति का विशेष महत्त्व है। ११५ प्रवचनों से संवलित यह कृति समाज के विभिन्न वर्गों का मार्गदर्शन करने में सक्षम है। विशेष रूप से इसमें अणुव्रत आंदोलन का स्वर अधिक मुखरित हुआ है, क्योंकि इसी आंदोलन के माध्यम से आचार्यश्री ने देश के आध्यात्मिक एवं नैतिक उत्थान का बीड़ा उठाया है। ४० साल पुराने होते हुए भी ये प्रवचन आज भी समीचीन एवं पाठक की चेतना को उबुद्ध करने में उपयोगी बने हुए हैं। सफर : आधी शताब्दी का 'सफर : आधी शताब्दी का' पुस्तक में आचार्य तुलसी ने अपनी पचास वर्ष की उपलब्धियों एवं अनुभूतियों का सरस आकलन किया है। इसके अतिरिक्त सामाजिक , राष्ट्रीय, धार्मिक एवं राजनैतिक अनेक समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत किया है । 'रचनात्मक प्रवृत्तियां' जैसे कुछ लेखों में उन्होंने अपने भावी कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त युवकों एवं महिलाओं को लक्ष्य करके लिखे गये कुछ प्रेरक लेख भी इसमें समाविष्ट हैं। इस पुस्तक में 'राजस्थान की जनता के नाम' शीर्षक आलेख एक नए समाज एवं राज्य की संरचना के सूत्र प्रस्तुत करता है तथा राजस्थान की जनता की सुप्त चेतना को जागृत करने की अर्हता रखता है। यह पुस्तक लेखक के जीवन, चिंतन, दर्शन एवं उपलब्धियों का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है । इसमें कुल ३७ लेखों में जैन-धर्म के मूलभूत सिद्धांत तथा भारतीय संस्कृति के अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का अनावरण हुआ है। संक्षेप में कहें तो इसका सिंहावलोकन वर्तमान क पर्यालोचन एवं भविष्य का दिशानिर्धारण है । 'अमृत-संदेश' के प्रायः सभी लेखों का समाहार इस पुस्तक में कर दिया गया है। समण दीक्षा ‘समण दीक्षा' आचार्य तुलसी के क्रांतिकारी अवदानों की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है । इसे आधुनिक युग का नया संन्यास कहा जा सकता है। सन् १९८० में आचार्य तुलसी ने विलक्षण दीक्षा देने की उद्घोषणा की। इस नए पथ पर चलने का साहस छह बहिनों ने किया। दीक्षा के अवसर पर इस श्रेणी का नाम 'समण श्रेणी' रखा गया। 'समण दीक्षा' पुस्तिका में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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