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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
२४३ श्रावक सम्मेलन में 'श्रावक सम्मेलन में' पुस्तिका आचार्य तुलसी के क्रांतिकारी विचारों का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। यह आचार्यश्री का ऐतिहासिक प्रवचन है, जो लगभग ४००० श्रावकों के मध्य हांसी में दिया गया। इसमें तेरापन्थ धर्मसंघ में किए गए अनेक परिवर्तनों का स्पष्टीकरण है तथा उनकी युगीन महत्ता को स्पष्ट किया गया है । तेरापन्थ के विकास-क्रम का इतिहास इस पुस्तिका के माध्यम से भलीभांति जाना जा सकता है । मौलिक सिद्धांतों को सुरक्षित रखते हुए लेखक ने जिन युगीन परिवर्तनों का सूत्रपात किया है, वह क्रांतिकारी एवं सामयिक है ।
___ इस प्रवचन में एक धर्मनेता का अमित आत्मबल और साहस मुखर हो रहा है। चूहे-बिल्ली के रूप में प्रसिद्ध तेरापन्थ आज जैन धर्म का पर्याय बन गया है, इसका राज भी इसमें विश्लेषित है। आचार्यश्री ने धर्मसंघ में किए गए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का स्पष्टीकरण भी इसमें किया
संदेश 'सन्देश' आत्मदर्शन माला का दूसरा पुष्प है। इसमें तत्त्वज्ञान तथा भारतीय संस्कृति के तत्त्वों को उजागर किया गया है। इस कृति में धर्म के कुछ मौलिक सिद्धांतों का विश्लेषण भी है। पुस्तक के परिशिष्ट में कवि सम्मेलन में हुआ आचार्य तुलसी का उद्घाटन भाषण तथा अन्य साधुसाध्वियों की संस्कृत आशु कविताएं हिंदी अर्थ के साथ प्रकाशित हैं । अतः संस्कृत भाषा के प्रेमी लोगों के लिए भी यह पुस्तक विशेष महत्त्व रखती है । अन्त में स्वाधीनता दिवस पर गाए गए गीतों का संकलन है।
आकार में लघु होने पर भी यह कृति हमारी ज्ञान-पिपासा को शांत करने में सक्षम है।
संभल सयाने! आचार्य तुलसी के प्रवचन ज्ञान और भावना-इन दोनों गुणों से समन्वित हैं । ज्ञानप्रधान प्रवचन जहां कर्त्तव्य-अकर्तव्य, उचित-अनुचित का बोध कराते हैं, वहां भावनाप्रधान प्रवचन पाठक के मन में बल और पौरुष का सचार करते हैं।
'संभल सयाने !' एक ऐसा ही प्रवचन संकलन है, जिसमें बुद्धि और हृदय का समन्वय हुआ है। इसमें सन् १९५४ में बंबई में हुए प्रवचनों का संकलन है। यह कृति अपने प्रथम संस्करण में प्रवचन डायरी, भाग-२ के रूप में प्रकाशित थी।
समीक्ष्य कृति में समाज, देश एवं राष्ट्र को नया दिशाबोध तथा
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