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________________ ૨૪૨ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण तथा उनके खण्डित होने के कारणों का भी वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। "व्रत दीक्षा" पुस्तिका में आचार्य तुलसी ने २५०० वर्ष पूर्व दिए गए इन व्रतों को विस्तार से आधुनिक भाषा में प्रकट करने का प्रयत्न किया है तथा बच्चों को भी व्रत-दीक्षा से दीक्षित करने की विधि का संकेत किया है। यह लघु पुस्तिका संयम की महत्ता को प्रकट कर बालकों को आत्मानुशासन का बोधपाठ देने वाली है। शांति के पथ पर (दूसरी मंजिल) 'शांति के पथ पर' (दूसरी मंजिल) सर्वोदय ज्ञानमाला का पांचवा पुष्प है । ५८ छोटे-छोटे आलेखों एवं प्रवचनों से युक्त यह पुस्तक विविध विषयों का संस्पर्श करती है। लगभग ४० साल पूर्व हुए प्रवचनों को इस पुस्तक में संकलित कर सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं साहित्यिक परम्पराओं का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया गया है। यह पुस्तक त्याग और संयम की संस्कृति को उज्जीवित रखने की प्रेरणा देती है, साथ ही आज के अशांत वातावरण में शांतिपूर्ण जीवन कैसे जीया जा सके, इसका अवबोध भी हमें इससे मिलता है। प्रवचनों में प्रयुक्त दोहे, श्लोक सुग्राह्य एवं गहरे अर्थ लिए हुए हैं। इस कृति के विचार बौद्धिक स्तर पर ही नहीं, अनुभूति के स्तर पर लिखे एवं बोले गए हैं इसलिए यह और अधिक मूल्यवान् कृति बन गई है। श्रावक आत्मचिन्तन आचार्य तुलसी आत्मद्रष्टा ऋषि हैं। वे चाहते हैं कि उनके अनुयायी भौतिकता में रहकर भी आत्मा की परिधि में रहें। आत्मद्रष्टा बनने के लिए आत्म-चिन्तन अनिवार्य है। 'श्रावक आत्मचिन्तन' कृति में आत्म-चिन्तन के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का निर्देश है। ये चिन्तन-बिन्दु आध्यात्मिक, नैतिक व लौकिक इन तीन भागों में विभक्त हैं । यदि इन प्रेरक बिन्दुओं पर व्यक्ति प्रतिदिन आत्म-चितन करे तो सुख और शांति स्वतः जीवन में अवतरित हो जाएगी । इस कृति में आत्म-चिन्तन के साथ-साथ व्यसन, मांस, मदिरा वेश्यागमन, निरपराध हिंसा, चोरी, परस्त्रीगमन आदि विषयों पर प्रेरक सूक्तियां भी संकलित हैं। ये सूक्तियां सप्तव्यसनों से मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। इस लघुकाय पुस्तिका में नवसूत्री तथा तेरहसूत्री योजना का उल्लेख भी है, जो चरित्रनिष्ठ जीवन जीने के आदर्श सूत्र हैं । अन्त में कुछ प्रेरक गीत भी पुस्तिका में संकलित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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