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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
को ही अभिव्यक्ति नहीं दी अपितु 'गहरे पानी पैठ' इस आदर्श के साथ विचारों को प्रस्तुति दी है । 'सूरज ढल ना जाए' ऐसे ही १४८ महत्त्वपूर्ण प्रवचनों का संकलन है ।
यह पुस्तक सन् १९५५ में विविध स्थानों में दिए गए प्रवचनों / वक्तव्यों का संकलन है । आचार्य तुलसी यायावर हैं अतः प्रतिदिन नए-नए श्रोताओं के लिए उनके प्रवचन विविधता लिए हुए होते हैं। प्रस्तुत संकलन में अणुव्रत सम्बन्धित लेख अधिक हैं । आचार्य तुलसी ने गांव-गांव, नगर- नगर घूमकर अणुव्रत आंदोलन द्वारा देश के कोने-कोने में व्याप्त अन्धभक्ति, व्यसन, दुराचार, भ्रष्टाचार आदि विकृतियों को दूर कर स्वस्थ समाज - संरचना की प्रेरणा दी है । इस प्रकार प्रस्तुत कृति में भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन्त बनाए रखने का भरसक प्रयास किया गया है । ये प्रवचन आध्यात्मिक क्षितिज पर खड़े होकर समूची दुनिया और उससे जुड़ी परिस्थितियों को गम्भीरता से समझने में सहयोगी बनते हैं । प्रवचन अति प्राचीन होने पर भी सीधे हृदय का स्पर्श करते हैं ।
यह ग्रन्थ प्रवचन डायरी, भाग २ का नवीन संस्करण है तथा प्रवचन पाथेय के १५ वें पुष्प के रूप में प्रकाशित है ।
सोचो ! समझो !! भाग-१-३
मानव और पशु के बीच एक महत्त्वपूर्ण भेदरेखा है- सोचना और समझना । प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस क्षमता को पाकर भी व्यक्ति उसका सही उपयोग नहीं करता । सोचो ! समझो !! के तीनों भाग व्यक्ति की दृष्टि को परिमार्जित कर उसे नए ढंग से सोचने-समझने एवं करने की प्रेरणा देते हैं । जीवन को उन्नत बनाने वाले मूल्यों का जीवन में अवतरण कैसे करें, इसका सुन्दर विवेचन इन कृतियों में मिलता है ।
द्वितीय संस्करण में सोचो ! समझो ! ! भाग १ प्रवचन - पाथेय भाग ४ के रूप में, सोचो ! समझो !! भाग दो प्रवचन पाथेय भाग ५ के रूप में तथा सोचो ! समझो !! भाग तीन स्वतंत्र रूप से भी प्रकाशित है तथा प्रवचन - पाथेय की शृंखला में यह भाग ६ के रूप में प्रसिद्ध है ।
अनेक प्रवचनों से संवलित ये कृतियां अनेक कथाओं एवं रूपकों से संबद्ध होने के कारण बालक, युवा एवं वृद्ध सबके लिए पठनीय बन गयी हैं ।
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