________________
सताईस
प्रयास इतना ही है कि आचार्य तुलसी के विचारों पर शोध करने वाले विद्यार्थी उनके इन विचारों को पढ़कर उनमें अन्तनिहित रहस्यों को आत्मसात् कर उनको जनभोग्य बनाने का प्रयत्न करें। पुनरुक्ति एवं पुनर्मुद्रण
आचार्यश्री के वाङमय में अनेक स्थलों पर पुनरुक्ति हुई है। एक ही लेख या प्रवचन शीर्षक-परिवर्तन के साथ दो पुस्तकों में भी प्रकाशित हो गया है। जैसे ---'धर्म : एक कसौटी, एक रेखा' में जो वार्ता 'सेठ गोविंददासजी के प्रश्न : आचार्य तुलसी के उत्तर' नाम से है वही 'अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत' पुस्तक में 'जिज्ञासा के झरोखे से' शीर्षक से है। 'शांति के पथ पर' पुस्तक में जो प्रवचन 'नियम का अतिक्रम क्यों ?' शीर्षक से है, वही कुछ परिवर्तन के साथ प्रवचन पाथेय भाग-९ में 'क्या भारत स्वतन्त्र है ?' शीर्षक से है, यद्यपि यह पुनरुक्ति सलक्ष्य नहीं हुई है, पुस्तक की संख्या का व्यामोह भी नहीं है, पर अनेक संपादकों के होने से ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं था। क्योंकि पत्र-पत्रिकाओं से अलग-अलग व्यक्तियों ने लेखों एवं प्रवचनों का संकलन कर उनका अपने ढंग से सम्पादन किया है।
यद्यपि शोधार्थियों की सुविधा एवं ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसी पुनरुक्तियों का उल्लेख करना आवश्यक था, पर इतने विशाल वाङ्मय पर यह कार्य करना समयसापेक्ष ही नहीं, स्मृतिसापेक्ष और श्रमसाध्य भी है अतः ऐसा सम्भव नहीं हो सका । पर मुख्य रूप से पुनर्मुद्रण में नाम-परिवर्तन के साथ निकली पुस्तकों की सूची तथा कुछ पुनरुक्त लेखों के पुस्तकों की सूची नीचे प्रस्तुत की जा रही है।
आचार्यश्री की कुछ पुस्तकें पुनर्मुद्रण में नाम-परिवर्तन या संशोधन एवं परिवर्धन के साथ प्रकाशित हुई हैं। उनकी मुख्य सूची इस प्रकार है --- पुराना संस्करण
नया संस्करण १. मुक्तिपथ
गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का २. अमृत संदेश सफर : आधी शताब्दी का ३. उद्बोधन
समता की आंख : चरित्र की पांख ४. अणुव्रत के संदर्भ में अणुव्रत : गति-प्रगति १. 'अणुव्रत के सन्दर्भ में' पुस्तक के अनेक लेख शीर्षक-परिवर्तन के साथ
अणुव्रत : गति-प्रगति में समाविष्ट हैं । जैसे- 'अणुव्रत के सन्दर्भ में पुस्तक में जो शीर्षक "पर्यटकों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराया जाए" तथा "राजनीति के मंच पर उलझा राष्ट्रभाषा का प्रश्न और दक्षिण भारत' से है, वे ही अणुव्रत : गति प्रगति में “पर्यटकों का आकर्षण : अध्यात्म" तथा "राष्ट्रभाषा का प्रश्न और दक्षिण भारत" के नाम से है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org