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छब्बीस
तथा 'आचार्य तुलसी का ओजस्वी प्रवचन' शीर्षक से भी कुछ प्रवचन प्रकाशित हैं । उनको हमने इस संकेत-सूची में सम्मिलित नहीं किया है, क्योंकि इनमें विषयगत स्पष्टता नहीं है।
तीसरा परिशिष्ट ऐतिहासिक एवं भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें प्रवचन-स्थलों के नामों की सूची, विशेष प्रवचनों के संकेत तथा विशिष्ट व्यक्तियों के साथ हुई वार्ताओं के स्थान एवं समय का संकेत है । यदि आचार्य तुलसी के प्रवचनों का सारा इतिहास सुरक्षित रहता तो यह परिशिष्ट ही इतना विशाल होता कि उसे प्रकट करने के लिए एक अलग सन्दर्भ-ग्रन्थ की आवश्यकता रहती।
चौथे परिशिष्ट में 'सन्दर्भ ग्रन्थ सूची' तथा 'पुस्तक संकेत सूची' का उल्लेख किया गया है। इसे दो भागों में बांटने का मुख्य कारण यह है कि भूमिका में पुस्तक का नाम या संकेत न देकर पाठक की सुविधा के लिए पूरा नाम दिया है, पर विषय-वर्गीकरण में पुस्तकों के संकेत की पुनरुक्ति होने से उनका पूरा नाम न देकर मात्र संकेत दे दिया है। शोधविद्यार्थी आचार्य तुलसी के विचार-विकास के क्रम को जान सकें, इसलिए ऐतिहासिक क्रम से पुस्तकों की सूची भी दे दी गयी है।
___यद्यपि विषय वर्गीकरण में ही लेखों एवं प्रवचनों को ऐतिहासिक क्रम से देना ज्यादा अच्छा रहता पर सब प्रवचनों एवं लेखों की दिनांक सुरक्षित न रहने से हमने परिशिष्ट में ही पुस्तकों के ऐतिहासिक क्रम की सूची दे दी है। अंत में आचार्य तुलसी द्वारा लिखी काव्य-कृतियों एवं संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थों का नामोल्लेख भी किया गया है। गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
भूमिका में उनके गद्य साहित्य का संक्षिप्त पर्यालोचन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें चार मुख्य विषयों-अहिंसा, धर्म, राष्ट्र और समाज पर आचार्य तुलसी के विशेष चिन्तन को प्रस्तुत किया है, जिससे भविष्य में कोई भी पाठक या शोध-विद्यार्थी उनके विचारों को जानकर अपने शोध-विषय के निर्धारण में रुचि जागत कर सके । यद्यपि उन चारों विषयों पर उन्होंने व्यापक चिंतन प्रस्तुत किया है । पर इस पुस्तक में तो मात्र कुछ विचार ही पाठक के समक्ष प्रस्तुत हो सके हैं। इसी प्रकार अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर भी उन्होंने मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं, पर उन सबका आकलन प्रस्तुत ग्रंथ में संभव नहीं था।
आचार्यश्री के गद्य साहित्य की संक्षिप्त जानकारी के साथ अन्य लेखकों द्वारा उनके बारे में लिखी पुस्तकों का संक्षिप्त परिचय भी दे दिया है, जिससे शोधार्थी को उनके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व को जानने के स्रोतों का ज्ञान हो सके।
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