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पच्चीस
अहिंसा, अक्षय तृतीया, मानवधर्म आदि। कहीं-कहीं असावधानी से भी एक ही पुस्तक में शीर्षक की पुनरावृत्ति हो गई है। परिशिष्ट
परिशिष्ट किसी भी ग्रन्थ में पूरक का कार्य करते हैं। इस पुस्तक में चार परिशिष्ट जोड़े गए हैं । प्रथम परिशिष्ट में पुस्तकों में आए लेखों की अनुक्रमणिका है । इससे किसी भी लेख को ढूंढने में पाठक को सुविधा हो सकेगी।
दूसरे परिशिष्ट में पत्र-पत्रिकाओं के लेखों की सूची है। यद्यपि इन लेखों एवं प्रवचनों का भी विषय-वर्गीकरण अनिवार्य था, पर विस्तार-भय से ऐसा सम्भव नहीं हो सका। इसके अतिरिक्त आचार्यश्री के सैकड़ों लेख राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। उन सबका निर्देश करना भी महत्त्वपूर्ण कार्य है। पर सारी सामग्री एक स्थान पर सुलभ न होने से यह कार्य नहीं हो सका । उस कमी का अहसास बारबार होता रहा है। द्वितीय परिशिष्ट में हमने केवल संघीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों एवं प्रवचनों की सूची ही इस ग्रन्थ में दी है। उसमें भी सन् १९८४ तक की पत्र-पत्रिकाओं के लेख ही इसमें संकेतित हैं, क्योंकि बाद के वर्षों की पत्रिकाओं में छपे लगभग लेख पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं अतः पुनरुक्ति से बचने के लिए उनका समावेश नहीं किया है। सन् ८४ से पूर्व की पत्रिकाओं में छपे लेख या प्रवचन यदि पुस्तकों में है तो उनको हमने पत्र-पत्रिकाओं की सूची में नहीं दिया है, पर अनेक स्थलों पर पत्र-पत्रिकाओं के लेख शीर्षक-परिवर्तन के साथ पुस्तकों में प्रकाशित हैं, अतः वहां पुनरुक्ति होना सहज है । जैसे-जैन भारती (१३ जून ५४) में जो लेख 'अहिंसा' शीर्षक से प्रकाशित है, वही 'प्रवचन डायरी' में 'अहिंसा की शाश्वत मान्यता' इस शीर्षक से है। जैन भारती में (५ सित० ५४) में जो लेख 'समन्वय की दिशा अनेकान्तवाद' से है वही 'भोर भई' में 'अनेकांत' शीर्षक
'युवादृष्टि' के अनेक लेख पुस्तकों में शीर्षक-परिवर्तन के साथ संकलित हैं। जहां मुझे ज्ञात हुआ कि यह लेख या प्रवचन शीर्षक-परिवर्तन के साथ पुस्तक में प्रकाशित है उसे मैंने पत्र-पत्रिका की सूची में संलग्न नहीं किया है। जैसे, अणुव्रत में 'भारतीय आचार विज्ञान : एक पर्यवेक्षण' इस शीर्षक से शृंखलाबद्ध लगभग ३६ से अधिक वार्ताएं छपी हैं। वे सब 'अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी' पुस्तक में शीर्षक-परिवर्तन के साथ प्रकाशित हैं अतः हमने उनका इस परिशिष्ट में उल्लेख नहीं किया
'जैन भारती' में अनेक स्थलों पर 'आचार्य तुलसी का मंगल प्रवचन'
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