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________________ चौबीस ० 'धर्म : एक कसौटी, एक रेखा' पुस्तक में 'पत्र प्रतिनिधि तथा 'मत-अभिमत' इन दो खण्डों के शीर्षकों को इसमें समाविष्ट नहीं किया है। क्योंकि इनमें साहित्यिक विचार न होकर विशेष अवसरों, संस्थानों आदि से संबंधित सन्देशों का संकलन है। ० प्रवचन डायरी के तीन भाग सन् १९६० में प्रकाशित हुए थे। उनका जैन विश्वभारती प्रकाशन से नाम-परिवर्तन के साथ परिवधित एवं परिष्कृत संस्करण के रूप में पुनर्मुद्रण हो चुका है । यद्यपि हमने पुनर्मुद्रण की लगभग सभी पुस्तकों के शीर्षकों को इस पुस्तक में समाविष्ट किया है, पर इन प्रवचन डायरियों में सैकड़ों प्रवचन हैं, यदि उन सबका भी समावेश किया जाता तो इस ग्रन्थ का कलेवर और अधिक बढ़ जाता। अतः हमने प्रवचन डायरी के प्रवचनों की सूची को विषय वर्गीकृत कर लेने पर भी सलक्ष्य इस संकलन में समाविष्ट नहीं किया है। 'व्यक्ति और विचार' के अन्तर्गत 'विशिष्ट व्यक्तित्व' उपशीर्षक में अनेक स्थलों पर शीर्षक से यह स्पष्ट नहीं है कि किस व्यक्ति के बारे में विचार व्यक्त किए गए हैं । वहां हमने पाठकों की सुविधा के लिए ब्रेकेट में उस व्यक्ति का नाम दे दिया है । जैसे --- १. स्वतन्त्र चेतना का प्रहरी (लोकमान्य तिलक) २. सूक्ष्म दृष्टि वाला व्यक्तित्व (जैनेन्द्र कुमार जैन) ३. एक सुधारवादी व्यक्तित्व (रामेश्वर टांटिया) कहीं-कहीं 'जिज्ञासा के झरोखे से' या 'समाधान के स्वर' शीर्षक में विविध प्रश्नोत्तर हैं। वार्ता में जिस विषय से सम्बन्धित प्रश्न अधिक हैं, उसको उसी विषय के अन्तर्गत रख दिया है। कहीं-कहीं विषय को प्रमुखता न देकर शीर्षक को प्रमुखता देकर भी वर्गीकरण किया है। जैसे—'अणुव्रत : एक सार्वजनिक मंच' इसमें मुख्यतः अस्पृश्यता और जातिवाद पर प्रहार हुआ है पर हमने इसे 'नैतिकता और अणुव्रत' वर्गीकरण के अन्तर्गत रखा है। इसी प्रकार 'पच्चीससौवां निर्वाण महोत्सव कैसे मनाएं ?' तथा 'निर्वाण शताब्दी के सन्दर्भ में' इन दोनों लेखों में भगवान महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी के सन्दर्भ में समाज के समक्ष भावी योजनाओं का प्रारूप रखा गया है। इनमें विशेष रूप में महावीर के जीवन एवं दर्शन की चर्चा नहीं है, पर महावीर के निर्वाणदिन से सम्बन्धित होने के कारण तथा शीर्षक की प्रधानता से इन्हें 'व्यक्ति और विचार' के उपशीर्षक 'महावीर : जीवन-दर्शन' में रखा है। कहीं-कहीं शीर्षक व्यापक होने के कारण अनेक बार पुनरावृत्त हैं, पर उनमें निहित विषय-वस्तु भिन्न है, अत: सभी स्थानों पर पाठक एक ही शीर्षक को देखकर लेख या प्रवचन को पुनरावृत्त न मान लें । जैसे अनेकांत, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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