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________________ २३६ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण पाठक कहीं ऊबता नहीं। पुस्तक का प्रकाशकीय इस ग्रंथ की महत्ता इन शब्दों में प्रकट करता है -"प्रस्तुत पुस्तक एक महापुरुष के जीवन के विविध पक्षों का संक्षिप्त लेखा-जोखा है, जिसमें अध्यात्म की ज्योत्स्ना, साधना की आभा और ज्ञान की ज्योति सर्वत्र अनुस्यूत है। 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' के अनुसार शैशव से ही निखरता आचार्यश्री कालूगणी का असाधारण व्यक्तित्व किस प्रकार उत्तरोत्तर विराट् बनता गया, युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने अपनी सिद्ध लेखनी द्वारा प्रस्तुत किया है।" जीवनी साहित्य में इस ग्रंथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि अनेक दिलचस्प घटनाओं के कारण यह ग्रन्थ इतना रोचक बन गया है कि पाठक बार-बार इसको पढ़ने की इच्छा रखेगा। मुक्ति : इसी क्षण में "मोक्ष केवल पारलौकिक ही नहीं है, वर्तमान जीवन में भी जितनी शांति, जितना आनन्द और जितना चैतन्य स्फुरित होता है, वह सब मोक्ष का ही अनुभव है" । इन विचारों को अभिव्यक्ति देने वाली लघुकाय पुस्तक है-'मुक्ति : इसी क्षण में ।' ___ यह कृति शारीरिक, मानसिक और वैचारिक कुंठाओं, तनावों एवं विकृतियों को दूर करने का सक्षम माध्यम बनी है। इससे सत्य से साक्षात्कार तथा मोक्ष से तादात्म्य स्थापित करने के लिए सहज मार्गदर्शन प्राप्त होता है। द्वितीय संस्करण में इस कृति के अधिकांश आलेख 'मंजिल की ओर' भाग २ पुस्तक में समाविष्ट कर दिए गए हैं। २३ प्रवचनों/लेखों से युक्त यह लघुकाय पुस्तक जीवन की अनेक सार्थक दिशाओं का उद्घाटन करती मुक्तिपथ साहित्य मनुष्य को जीवन की खुराक देता है। जो साहित्य केवल शब्दजाल में गुम्फित होता है, वह जीवन को विशेष रूप से प्रभावित नहीं कर सकता पर जो जीवन-चर्या को रूपांतरण की प्रेरणा देकर जीवन के सही आचार का वर्णन करता है, वही साहित्य जनभोग्य हो सकता है । 'मुक्तिपथ' एक ऐसी ही कृति है, जो गृहस्थ जीवन के सामने आगमिक धरातल पर ऐसे छोटे-छोटे आदर्शों को प्रस्तुत करती है, जिससे वह सफल एवं शांत जीवन जी सके । वर्तमान के स्वच्छंदताप्रिय युग में यह कृति व्रतों का नया आलोक फैलाने वाली है तथा अहिंसा, सत्य आदि का आधुनिक सन्दर्भ में विश्लेषण करती है । यह जैन तत्त्व के अनेक पहल जैसे अनेकांत, रत्नत्रयी, सप्तभंगी, आत्मा, भाव आदि का सहज, सरल एवं संक्षिप्त शैली में विवेचन करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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