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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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पुनर्मुद्रण में यही पुस्तक 'गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का' इस. नाम से प्रकाशित हुई है। इसके नाम-परिवर्तन के बारे में आचार्य तुलसी कहते हैं-'मुक्तिपथ' नाम अच्छा ही था पर नाम पढ़ते ही यह ज्ञात नहीं होता था कि यह पुस्तक गृहस्थ समाज को तत्त्व-बोध देने की दृष्टि से लिखी गयी है। अतः पुनर्मुद्रण में इसका नाम रखा गया है 'गहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का।'
मुखड़ा क्या देखे दरपन में अपने जीवन के ७५वें वर्ष के उपलक्ष्य में आचार्य तुलसी ने किसी बड़े समारोह का आयोजन न करके अन्तर्मुखता जगाने, दृष्टिकोण का परिमार्जन करने तथा आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण करने हेतु साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं को प्रशिक्षित करने का सजीव उपक्रम चलाया। 'मुखड़ा क्या देखे दरपन में' पुस्तक में योगक्षेम वर्ष में हुए ७१ प्रवचनों का संकलन है, जिसमें अन्तःचेतना जगाने के लिए दिए गये दिशाबोध एवं दिशादर्शन हैं।
आचार्य तुलसी की यह कृति व्यक्ति को भाषा और तर्क में न उलझाकर भावों की गहराई में ले जाने में सक्षम है। प्रस्तुत पुस्तक व्यक्ति को अपने बारे में सोचने, अन्तःकरण में झांकने एवं स्वयं का मूल्यांकन करने के लिए विवश करती है । इसमें सहनशीलता एवं संवेदनशीलता का ऐसा स्रोत वहा है, जो समाज के सभी कूड़े-कर्कट को बहा ले जाने में सक्षम
पुस्तक में महावीर के जीवन एवं दर्शन के सम्बन्ध में भी महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी गयी हैं। लेखक ने आध्यात्मिक और वैज्ञानिक इन दो धाराओं को जोड़ने का जो प्रयत्न किया है, वह निःसन्देह भारत के सांस्कृतिक एवं चिन्तन के क्षितिज पर एक नया सूर्य उगाएगा। आज मूल्यांकन का हर पैमाना वैज्ञानिक है । इस परिप्रेक्ष्य में विज्ञान को अध्यात्म से जोड़ने का सशक्त प्रयास वास्तव में स्तुत्य है, दूरदर्शिता का परिचायक है और वर्तमान के अनुकूल है। यह कृति हर वर्ग के पाठक को अभिभूत और चमत्कृत करने में सक्षम है।
मेरा धर्म : केन्द्र और परिधि ___ आचार्य तुलसी ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने देश और काल की सीमा से परे होकर सार्वभौम सत्य की प्रतिष्ठा करके मानवता का पथ आलोकित किया है। वे सुलझे हुए चिन्तक हैं। उन्हें समाज में
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